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Showing posts from June 25, 2018

आवारगी नसीब के सब ज़ावियों में थी

आवारगी नसीब के सब ज़ावियों में थी मंज़िल क़दम के नीचे थी , मैं रास्तों में थी जिस को लहू से सींचा था वो शाख़-ए-बासमर हमसाए के मकान की अंगनाइयों में थी हस्ती तमाम जलती रही जिस में उम्र भर दोज़ख़ की आग रूह की गहराइयों में थी माना कि टूट टूट के बिखरी तो ये भी है शामिल तो ज़िन्दगी भी मगर साज़िशों में थी वहशत में जज़्ब होती गईं सारी मस्तियाँ अब वो कशिश कहाँ जो कभी बारिशों में थी क़ातिल की आँख में भी थी दहशत की इक झलक जो धार ख़ून में थी , कहाँ ख़ंजरों में थी रोए थे मेरे हाल प काँटे भी राह के शिद्दत तपक की ऐसी मेरे आबलों में थी कैसा ये फ़ासला था कि हर पल वो साथ था उल्फ़त की इक तड़प भी कहीं रंजिशों में थी बच कर तो आ गए थे किनारे प हम मगर तूफ़ाँ की हर अदा भी इन्हीं साहिलों में थी आख़िर को रिश्ते नातों में दीमक सी लग गई कैसी अजीब रस्म-ए-अदावत घरों में थी हर चंद गिर के हम को तो मिलना था ख़ाक में “ मुमताज़ ” उम्र भर की थकन इन परों में थी 

ये लकीरें हैं अयाँ रूह की वीरानी से

ये लकीरें हैं अयाँ रूह की वीरानी से देखते क्या हो मेरे चेहरे को हैरानी से یہ لکیریں ہیں عیاں روح کی ویرانی سے دیکھتے کیا ہو مرے چہرے کو ہیرانی سے डूब कर हम को मिला दिल के ख़ज़ीने का सुराग़ फ़ैज़ हम को ये मिला मौजों की तुग़ियानी से ڈوب کر ہم کو ملا دل کے خزینے کا سراغ فیض ہم کو یہ ملا موجوں کی تغیانی سے ज़हन उरियाँ है , नज़र उरियाँ है , बातें उरियाँ रूह उकता गई इस दौर की उरियानी से ذہن عریاں ہے، نظر عریاں ہے، باتیں عریاں روح اُکتا گیئ اِس دور کی عریانی سے ज़िंदगी कब से सदा देती है , अब लौट भी चल क्या मिलेगा तुझे सहरा ओं की गरदानी से زندگی کب سے صدا دیتی ہے، اب لوٹ بھی چل کیا ملیگا تجھے صحراؤں کی گردانی سے एक हो जाते हैं ख़ून और पसीना यारो रिज़्क़ मिलता नहीं इस दौर में आसानी से ایک ہو جاتے ہیں خون اور پاسینہ یارو رزق ملتا نہیں اِس دور میں آسانی سے हम को मिट कर भी रज़ा तेरी मयस्सर न हुई कैसे जाएगी ये सिलवट तेरी पेशानी से ہم کو مِٹ کر بھی رضا تیری میسر نہ ہویئ کیسے جایۓگی یہ سلوٹ تری پیشانی سے जिंदगी का भी हर इक बाब पढ़ा जाएगा थोड़ी मोह

घुटा जाता है क़ैद-ए-ज़हन में तो दम मोहब्बत का

घुटा जाता है क़ैद-ए-ज़हन में तो दम मोहब्बत का हर इक जज़्बा यहाँ मोहताज है दिल की रिफ़ाक़त का नियाज़-ए-शौक़ , अब तो इम्तेहाँ है तेरी रहमत का सिला अब चाहती है ज़िन्दगी अपनी इबादत का अगर दिल है तो फिर उस में मोहब्बत ही मोहब्बत हो दिलों की सल्तनत में दोस्तो , क्या काम नफ़रत का वही इक बार बस उजड़ी थी दुनिया आरज़ूओं की तमन्ना कर रही है आज भी इक़रार दहशत का सुलगती ज़ात के सहरा में आई थीं बहारें भी हमारी ज़िन्दगी पर क़र्ज़ है उस एक साअत का अयाँ हैं यूँ तो उस की ज़ात के सौ ज़ाविए हम पर चलो ये ज़ाविया भी देख लें उस की अदावत का ग़ज़ब का शोर है , हस्ती की किरचें बिखरी जाती हैं तलातुम आज तो दिल में उठा है यार , शिद्दत का तलातुम में लहू के रेज़ा रेज़ा डूबा जाता है तमाशा देखती है ज़िन्दगी दिल की हलाकत का मोहब्बत की ये राहें जलते सेहरा से गुज़रती हैं हमें भी पास आख़िर रखना होगा इस रिवायत का हमारी ज़िन्दगी पर क्यूँ भला अग़यार का हक़ हो किया है अब के हम ने फ़ैसला ख़ुद अपनी क़िस्मत का ज़मीरों का भी सरमाया जहाँ नीलाम हो जाए हमें “ मुमताज़ ” रास आया न ये बाज़ार शोहरत का

तबाही का सबब है, फिर भी इन्साँ की ज़रुरत है

तबाही का सबब है , फिर भी इन्साँ की ज़रुरत है मोहब्बत क्या क़यामत , क्या बला है , कैसी आफ़त है कोई हसरत , न कोई दर्द है , ग़म है , न चाहत है मेरे किरदार में हर सिम्त बस ख़िल्वत ही ख़िल्वत है क़दम उठते नहीं , अब हर इरादा टूटने को है जुनूँ की आज़माइश है , तमन्नाओं की शामत है जुनूँ हो , इश्क़ हो , वहशत हो , नफ़रत हो , कि हसरत हो मुझे ऐ ज़िन्दगी तेरे हर इक तेवर से नफ़रत है मैं क़ैद ए इश्क़ से जानाँ तुम्हें आज़ाद करती हूँ चले जाओ , कि तुम को मेरे जज़्बों की इजाज़त है ख़ता तो मैं ने कोई की नहीं , ये याद है मुझ को मुझे अपनी पशेमानी पे जानाँ सख़्त हैरत है बड़ी मेहनत से मैं ने ये जहान ए दिल संवारा है ये उलझन और ये बेचैनी मेरी चाहत की उजरत है यही एहसास मुझ को चैन से रहने नहीं देता जुनूँ की चाशनी में थोड़ी वहशत की हलावत है बिखरती जा रही हैं ज़िन्दगी की अब सभी पर्तें हर इक जज़्बे की , हर हसरत की कुछ ऐसी ही हालत है अभी "मुमताज़" किस दिल से सुनूं अफ़साना ए उल्फ़त अभी बीनाई नालां है , अभी ज़ख़्मी समाअत है  सबब-कारण , पशेमानी-शर्मिंदगी , उजरत-मज़दूर