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Showing posts from January, 2019

दिल ने दुनिया से जंग ठानी है

दिल ने दुनिया से जंग ठानी है अपनी तक़दीर आज़मानी है دل نع دنیا سے جنگ ٹھانی ہے اپنی تقدیر آزمانی ہے अब भी इतनी ही बस कहानी है एक राजा है एक रानी है اب بھی اتنی ہی بس کہانی ہے ایک راجہ ہے، ایک رانی ہے है यही दिल की दास्ताँ अब तक इक मोहब्बत है इक जवानी है ہے یہی دل کی داستاں اب تک اک محبت ہے اک جوانی ہے आँधियों से कहो ज़रा दम लें शम्मा इक राह में जलानी है آندھیوں سے کہو ذرا دم لیں شمع اک راہ میں جلانی ہے ज़िन्दगी ही कभी तलातुम थी अब तलातुम में ज़िन्दगानी है زندگی ہی کبھی طلاطم تھی اب طلاطم میں زندگانی हों मुक़ाबिल हज़ारहा तूफ़ाँ कब किसी की जुनूँ ने मानी है ہوں مقابل ہزارہا طوفاں کب کسی کی جنوں نے مانی ہے आस्माँ वुसअतें संभाल अपनी आज उड़ने की हम ने ठानी है آسماں وسعتیں سنبھال اپنی آج اڑنے کی ہم نے ٹھانی ہے क्या कहें इस में कितने तूफ़ाँ हैं आँख में बूँद भर जो पानी है کیا کہیں اس میں کتنے طوفاں ہیں آنکھ میں بوند بھر جو پانی پے जुस्तजू में ज़रा सी राहत की ख़ाक दर दर की हम ने छानी है جستتو میں ذرا سی راحت کی خاک در در کی ہم نے

वो हमसफ़र, मेरे हमराह जो चला भी नहीं

वो हमसफ़र , मेरे हमराह जो चला भी नहीं रहा भी साथ हमेशा , कभी मिला भी नहीं तमाम उम्र गुजरने को तो गुज़र भी गई प् बेक़रार सा वो पल कभी टला भी नहीं हुआ है दिल प् जो तारी ये बेहिसी का ख़ुमार सुकून ए दिल भी नहीं है , कोई ख़ला भी नहीं सद आफ़रीन ये ईज़ा परस्तियाँ दिल की कि ज़िन्दगी से मुझे अब कोई गिला भी नहीं चलें जो हम तो ज़माना भी साथ साथ चले हमारे साथ मगर कोई क़ाफ़िला भी नहीं हमारे दर्द से उस को बला की रग़बत थी तो ज़ख्म दिल का कभी हम ने फिर सिला भी नहीं रहा है यूँ तो हर इक ज़ाविया अयाँ , लेकिन ये राज़ ज़ात का हम पर कभी खुला भी नहीं ये और बात कि जीना भी फ़र्ज़ है , लेकिन हयात करने का "मुमताज़" हौसला भी नहीं wo hamsafar, mere hamraah jo chalaa bhi nahiN raha bhi saath hamesha, kabhi milaa bhi nahiN tamaam umr guzarne ko to guzar hi gai pa beqaraar sa wo pal kabhi talaa bhi nahiN hua hai dil pa jo taari ye behisi ka khumaar sukoon e dil bhi nahiN hai, koi khalaa bhi nahiN sad aafreen ye eezaa parastiyaaN dil ki ke zindagi se mujhe

डर तो है तुन्द हवा से, प जताते भी नहीं

डर तो है तुन्द हवा से , प जताते भी नहीं हम चराग़ों को सर ए राह जलाते भी नहीं हैं सख़ी आप , मगर ये तो मोहब्बत है जनाब ये ख़ज़ाना तो सर-ए-आम लुटाते भी नहीं हम को यादों का क़फ़स भी नहीं मंज़ूर , मगर नाम लिखा है जो दिल पर , वो मिटाते भी नहीं अपने ही पास रखें आप इनायत अपनी हम तो कमज़र्फ़ों का एहसान उठाते भी नहीं मसनूई चीज़ों से हम को है अदावत क्या क्या काग़ज़ी फूलों को हम घर में सजाते भी नहीं यूँ तो "मुमताज़" मुझे याद है हर बात मगर अब वो लम्हात मेरे दिल को दुखाते भी नहीं dar to hai tund hawaa se, pa jataate bhi nahiN ham charaaghoN ko sar e raah jalaate bhi nahiN haiN sakhi aap, magar ye to mohabbat hai janaab ye khazaana to sar e aam lutaate bhi nahiN ham ko yaadoN ka qafas bhi nahiN manzoor magar naam likkha hai jo dil par, wo mitaate bhi nahiN apne hi paas rakheN aap inaayat apni ham to kamzarfoN ka ehsaan uthaate bhi nahiN masnooi cheezoN se ham ko hai adaawat kya kya kaaghzi phooloN ko ham ghar meN sajaate bhi nahiN yuN to

कैश की शक्ल में आए जो, वो माल अच्छा है

कैश की शक्ल में आए जो , वो माल अच्छा है ख़्वाह दीनार-ओ-दिरहम हो , कि रियाल , अच्छा है ख़्वाह हो वोट की खातिर , प कोई काम तो हो डेमोक्रेसी में इलेक्शन का ही साल अच्छा है पहले शायर थे अलग , और गवय्ये थे अलग बन गए आज तो शायर ही क़वाल , अच्छा है पहले नाकर्दा गुनाहों की सज़ा दी , और अब प्रेस के सामने करते हैं मलाल , अच्छा है ज़िन्दगी चैन से मरने नहीं देती हम को और कर रक्खा है जीना भी मुहाल , अच्छा है एक बेचैनी सी दिन रात रहा करती है मेरे सर पर ये मोहब्बत का वबाल अच्छा है मेरे हाथों से न सरज़द हो कोई कार ए हराम दो निवाले हों , मगर रिज्क़ ए हलाल अच्छा है दिल में चुभती हैं तो जी उठते हैं अरमान कई उन की आँखों में ये पुरलुत्फ़ कमाल अच्छा है cash ki shakl meN aae jo, wo maal achha hai khwaah dinaar o dirham ho, ke riyaal, achha hai khwaah ho vote ki khaatir, pa koi kaam to ho democracy meN election ka hi saal achha hai pahle shaayar the alag, aur gavayye the alag ban gae aaj to shaayar hi qawal, achha hai pahle nakarda gunaahoN ki sazaa

एक दुआइआ

नज़र भी , रूह भी , दिल भी , है दामन भी तही दाता पुकारे तेरी रहमत को मेरी तशनालबी दाता तेरे हाथों में ऐ शाह ए सख़ा कौनैन रक्खे हैं बहुत छोटी , बहुत अदना सी है मेरी ख़ुशी दाता अक़ीदा है मेरा हट कर , तलब मेरी ज़ियादा है मेरा कशकोल है छोटा , तेरी रहमत कुशादा है दिया तू ने मुझे जो भी , तेरी रहमत से तो कम है मोहब्बत में मेरा हद से गुजरने का इरादा है मेरी तक़दीर में कौन ओ मकाँ रखना , इरम रखना मेरे दाता ज़रा अपनी सख़ावत का भरम रखना कहीं उम्मीद का शीशा न चकनाचूर हो जाए मेरे हालात पर दाता ज़रा नज़र ए करम रखना नज़र तेरी सख़ावत पर , तेरी देहलीज़ पर सर है मैं इक तूफ़ान हूँ ग़म का , तू रहमत का समंदर है मेरी इस प्यास को एहसास का दरिया अता कर दे मेरे दामन में दुनिया की सभी रानाइयाँ भर दे nazar bhi, rooh bhi, dil bhi, hai daaman bhi tahee daata pukaare teri rehmat ko meri tashna labi daata tere haathoN meN aye shaah e sakhaa kaunain rakkhe haiN bahot chhoti, bahot adnaa si hai meri khushi daata aqeeda hai mera hat kar, talab meri ziyaada hai mera kashkol hai chho

दब के इतने पैकरों में, सांस लेना है अज़ाब

दब के इतने पैकरों में , सांस लेना है अज़ाब ज़िन्दगी मुझ से मिली है ओढ़ कर कितने नक़ाब ये मेरी हस्ती भी क्या है , दूर तक फैला सराब जल रहा है ज़र्रा ज़र्रा , तैश में है आफ़ताब मिट के भी हम कर न पाए उल्फ़तों का एहतेसाब क्या मिला बदला वफ़ा का , इक ख़ला , इक इज़तेराब पढ़ रहे हैं हम अबस , कुछ भी समझ आता नहीं खुल रहे हैं पै ब पै रिश्तों के हम पर कितने बाब क्या करें , बीनाई के ये ज़ख्म भरते ही नहीं चुभता है आँखों में , जब जब टूटता है कोई ख़्वाब ख़्वाब के मंज़र भी अक्सर सच ही लगते हैं , मगर खुल गया सारा भरम , अब हर ख़ुशी है आब आब ज़िन्दगी लेती रही है इम्तेहाँ पर इम्तेहाँ सब्र ओ इस्तेह्काम है हर आज़माइश का जवाब खा के नौ सौ साठ   चूहे , बिल्ली अब हज को चली आसी ए आज़म बने हैं आज कल इज़्ज़त मआब कितने हैं किरदार , माँ , बेटी , बहन , बीवी , ग़ुलाम हाँ मगर , " मुमताज़" की हस्ती , न कोई आब ओ ताब   dab ke itne paikroN meN, saans lena hai azaab zindagi mujh se mili hai odh kar kitne naqaab ye meri hasti bhi kya hai, door tak phaila saraab jal raha hai za

रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है

रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है ये अँधेरा शब ए तन्हाई का जलता क्यूँ है अश्क शबनम के यही करते हैं हर रोज़ सवाल गोद में शब की अँधेरा ये पिघलता क्यूँ है कोख में क़त्ल किये जाने की क्यूँ दी है सज़ा बाग़बाँ अपनी ही कलियों को कुचलता क्यूँ है मस्लेहत क़ैद रखेगी मुझे आख़िर कब तक ये जुनूँ रूप बदल कर मुझे छलता क्यूँ है ग़म के तेज़ाब से एहसास की सींची हैं जड़ें फिर तमन्ना का शजर आज भी फलता क्यूँ है क़ैद कर लेती है क्यूँ नूर को तारीकी - ए - शब बूढ़े सूरज को उफ़क़ रोज़ निगलता क्यूँ है ज़ेर - ओ - बम गर्दिश - ए - हालात के क्या हैं आख़िर आसमाँ रोज़ नए रंग बदलता क्यूँ है क़तरे सीमाब के "मुमताज़" न हाथ आएँगे दिल अबस नारसा हसरत प् मचलता क्यूँ है शजर – पेड़ , तारीकी-ए-शब – रात का अँधेरा , उफ़क़ – क्षितिज , ज़ेर - ओ - बम – ऊँच नीच , सीमाब – पारा , अबस – बेकार , नारसा – जिस की पहुँच न हो roz ehsaas ye angaaroN meN dhalta kyuN hai ye andhera shab e tanhaai ka jalta kyuN hai ashk shabnam ke yahi karte haiN har roz sawaal god meN shab ki andhera ye