Posts

Showing posts from August 1, 2018

कितनी तरकीबों से इस दिल को मनाया होगा

कितनी   तरकीबों   से   इस   दिल   को   मनाया   होगा दर्द   का   अक्स   ब मुश्किल   जो   छुपाया   होगा हर   तमन्ना   को   लहू   दिल   का   पिलाया   होगा तब   कहीं   उस   को   निगाहों   से   गिराया   होगा उस   को   जब   तर्क - ए - त ' अल्लुक़   ने   सताया   होगा जुस्तजू   में   वो   मेरी   दूर   तक   आया   होगा लौट   आए   तेरी   देहलीज़   से   ये   सोच   के   हम तेरी   महफ़िल   में   बहुत   तंज़   ओ   क़िनाया होगा चल   दिए   हम   जो , तो   ठहरे   न किसी   तौर   मगर   माना   दिल   ने   तो   बहुत   शोर   मचाया   होगा आई   होंगी   कई   यादें   उसे   बहलाने   को शब्   की ...

मुझ में दोज़ख़ सा ये जलता क्यूँ है

मुझ   में   दोज़ख़ सा   ये   जलता   क्यूँ   है ख़ून लावा   सा   उबलता   क्यूँ   है मुझ   से   इतनी   जो   अदावत   है तुझे   फिर   मेरे   साथ   भी   चलता   क्यूँ   है बारहा घुल के    मेरा ज़ख़्मी वजूद   नित   नए   सांचों   में   ढलता   क्यूँ   है है   जो   बेकार , तो   लौटा   दे   मुझे दिल   को   पैरों   से   मसलता   क्यूँ   है आतिश-ए - दिल   तो   कब   की   सर्द   हुई ये   मेरा   ज़हन पिघलता   क्यूँ   है कोई   मौसम   है   हर   इक   रिश्ता क्या " वक़्त   के   साथ   बदलता   क्यूँ   है " आरज़ू ' ओं   का   ये   " मुमताज़ " शजर मर   गया   है   तो   ये फलता क्यूँ   है مجھ   میں   دوزخ ...

रोए है , न तडपे है , न फ़रियाद करे है

रोए   है , न   तडपे   है , न   फ़रियाद   करे   है तन्हाई   की   बस्ती   ये   दिल   आबाद   करे   है हर   तार - ए - गरेबाँ सितम   ईजाद   करे   है अब   आम   जुनूँ   सब   मेरी   रूदाद   करे   है वहशत   का   हर   इक   लम्हा   तुझे   याद   करे   है तन्हाई   शब-ए - तीरा   की   फ़रियाद   करे   है रेज़े   ये   तबाही   के   कहाँ   तक   मैं   समेटूं ये   कौन   हमेशा   मुझे   बरबाद   करे   है हर   बार   फ़ना   हो   के   सिवा   होती   है   ख़्वाहिश क्या   हसरत   ए   नाकाम   भी   बेदाद   करे   है आज़ाद   किया   मैं   ने   तुझे   क़ैद   ए   वफ़ा   से वो   कितनी   अदा   से   ये ...