पछता रहे हैं काम से उस को निकाल के
पछता रहे हैं काम से उस को निकाल के खाएँगे कितने दिन यूँ ही अंडे उबाल के तिरसठ बरस की सिन में तमन्ना है हूर की जुम्मन मियाँ को शौक़ हुए हैं कमाल के पतली गली से जल्द खिसक लो तो ख़ैर है रक्खा है क़र्ज़ख़्वाहों को वादों प टाल के मुश्टंडे चार हम ने बुला रक्खे हैं कि अब जूते बना के पहनेंगे आशिक़ की खाल के ख़ाविंद खट रहा है शब-ओ-रोज़ काम में बेगम मज़े उड़ाती है शौहर के माल के फिर भी न बदनज़र से बचा हुस्न कार का लटकन कई लगाए थे घोड़े की नाल के “ मुमताज़ ” राह-ए-इश्क़ की मजबूरियाँ न पूछ परखच्चे उड़ गए हैं मियाँ बाल बाल के