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Showing posts from March 10, 2017

महंगाई मार गई (बुरा न मानो...होली है)

दीवाली को लाए जो मिठाई मार गई सर्दी में रज़ाई की बनवाई मार गई सियासी सियारों की रंगाई मार गई भाजपा की हम को भाजपाई मार गई बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई पिछले साल बारिश न आई मार गई अब के साल हो कर भी भाई मार गई अबके बम्पर फ़स्ल की कमाई मार गई किसानों ने लागत न पाई मार गई बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई सदन में नेताओं की जम्हाई मार गई जनता को मनमोहन की भलाई मार गई कुछ तो रिश्वतख़ोरों की ढिठाई मार गई कॉमन वेल्थ खेलों की मलाई मार गई बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई किंगफ़िशर कलेंडर की नंगाई मार गई माल्या ने खाई वो मलाई मार गई क़र्ज़ ले के भागे तो भगाई मार गई हमको इनके क़र्ज़े की भरपाई मार गई बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई कुछ तो हमें जियो की कमाई मार गई और कुछ मुकेश की भलाई मार गई दूध में पड़ी है जो खटाई मार गई मल्टीनेशनल चोरों की कमाई मार गई बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई कुछ तो नोटबंदी की सच्चाई मार गई और कुछ ये मोदी की सफ़ाई मार गई जम के इनकम टैक्स की खिंचाई मार गई हम को अच्छे दिनों की अच्छाई मार गई बाक़ी कुछ बचा तो महंगाई मार गई 

जुनूँ में मार के ठोकर जलाल-ओ-हश्मत पर

जुनूँ में मार के ठोकर जलाल-ओ-हश्मत पर निकल तो आए हैं इस अजनबी मुसाफ़त पर किसे ख़बर थी कि तू भी नज़र बचा लेगा यक़ीन हम को बहुत था तेरी मोहब्बत पर अना भी ऐसी कि ठोकर पे है जहाँ सारा ग़ुरूर हम को बहुत है इस अपनी आदत पर ज़रा सा झुक के ज़माने को जीत लें लेकिन तरस भी आता नहीं हमको अपनी हालत पर निकल भी जाए तमन्ना , झुके न सर भी कहीं ये सारी बात फ़क़त मुनहसिर है हिम्मत पर जो चाह लें तो फ़लक तक भी हम पहुँच जाएँ निसार होती है क़िस्मत हमारी अज़्मत पर झुका है सर तो फ़क़त तेरे आस्ताने पर है नाज़ हम को तो “ मुमताज़ ” इस इबादत पर   जलाल-ओ-हश्मत – महानता और शान-ओ-शौकत , मुसाफ़त – सफ़र , फ़क़त – सिर्फ़ , मुनहसिर – based, अज़्मत – महानता , आस्ताने पर – चौखट पर 

जबीं पे आपकी बूँदें हैं क्यूँ पसीने की

जबीं पे आपकी बूँदें हैं क्यूँ पसीने की सज़ा तो हमको मिली टुकड़ा टुकड़ा जीने की थपेड़े उसको फिराते रहे यहाँ से वहाँ किनारा छूने की ख़्वाहिश रही सफ़ीने की गुमाँ सा होता है हर शख़्स पर अदू का क्यूँ महक सी आती है सड़कों से कैसी क़ीने की जो उस के दिल में रहा दफ़्न राज़ बन के सदा ख़बर मिली भी कहाँ हम को उस दफ़ीने की शआर सबका तिजारत है इस ज़माने में है किसको क़द्र मोहब्बत के इस नगीने की तड़क के टूट गए जाने कैसे सब टाँके हज़ार कोशिशें कीं हम ने ज़ख़्म सीने की न हम थे मीरा न “ मुमताज़ ” थे कोई सुक़रात सज़ा ये कैसे मिली हमको ज़हर पीने की जबीं – माथा , सफ़ीने की – नाव की , अदू – दुश्मन , क़ीने की – धोखे की , दफ़ीने की – दबे हुए ख़ज़ाने की , शआर – चलन , तिजारत – व्यापार 

ज़ीस्त एहसास के मातम के सिवा कुछ भी नहीं

ज़ीस्त एहसास के मातम के सिवा कुछ भी नहीं प्यार बरबादी-ए-पैहम के सिवा कुछ भी नहीं राह सीधी सी , कोई मोड़ न दुश्वारी है अब यहाँ एक से मौसम के सिवा कुछ भी नहीं अब न माज़ी की कोई याद न ख़्वाब-ए-फ़र्दा दिल में जज़्बात के मातम के सिवा कुछ भी नहीं बस वही सहरा नवर्दी , वही आवारगी है दिल में अब एक से आलम के सिवा कुछ भी नहीं  एक बोसीदा खँडर , चंद पुरानी यादें इस ख़ज़ाने के मुक़ाबिल तो इरम कुछ भी नहीं तूल ये राह का , दिल ऊब गया है अब तो राह-ए-दुश्वार में बस ख़म के सिवा कुछ भी नहीं कल का वो ख़्वाब भी “ मुमताज़ ” कितना रंगीं था आज तो आँख में शबनम के सिवा कुछ भी नहीं ज़ीस्त – ज़िन्दगी , पैहम – लगातार , दुश्वारी – मुश्किल , माज़ी – अतीत , ख़्वाब-ए-फ़र्दा – भविष्य का सपना , सहरा नवर्दी – रेगिस्तान की खाक छानना , बोसीदा – टूटा फूटा , इरम – जन्नत , तूल – लंबाई , ख़म – घुमाव 

जब भी मैं ने ख़त किया नक़्शा किसी तस्वीर का

जब भी मैं ने ख़त किया नक़्शा किसी तस्वीर का रह गया खो कर लकीरों में हुनर तहरीर का हम को सारी उम्र उस का रास्ता तकना पड़ा अब भला वो क्या बताएगा सबब ताख़ीर का हज़रत ए आदम से जो सादिर हुआ था इक गुनाह क़र्ज़ अब तक ढो रहे हैं हम उसी तक़सीर का नक़्श थी जो दिल के काग़ज़ पर , जिगर के खून से रंग हर इक उड़ रहा है अब तो उस तस्वीर का एक झूठे ख़्वाब पर हम ने जवानी सर्फ़ की हम को था पूरा यकीं उस ख़्वाब की ताबीर का हम तो ख़ुद अपनी अना के दायरों में क़ैद थे हम ने देखा ही नहीं हल्क़ा तेरी ज़ंजीर का है हमारी ही हुकूमत दिल नगर पर आज भी हम ने ही पाया है विरसा इश्क़ की जागीर का रो रही है खून , काग़ज़ पर खिंची हर इक लकीर " नक़्श फरियादी है किस की शोख़ी ए तहरीर का " पड़ गए " मुमताज़ " ज़हर ए हक़ से छाले दहन में होना था कुछ तो असर सच्चाई की तासीर का ख़त किया – खींचा , सबब – कारण , ताख़ीर – देर , सादिर हुआ था – हो गया था , तक़सीर – भूल , विरसा – विरासत , हक़ – सच्चाई , दहन – मुँह