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Showing posts from July 14, 2018

माज़ी के अलम हाल को खाने नहीं आते

माज़ी   के   अलम   हाल   को   खाने   नहीं   आते वापस   तो   पलट   कर   वो   ज़माने   नहीं   आते कितना   है   बयाबान   मेरी   ज़ात   का   जंगल अरमाँ   भी   यहाँ   शोर   मचाने   नहीं   आते जो   आँख   को   मोती   मिले , लौटाएँ   किसे   हम क़र्ज़े   ये   अभी   हम   को   चुकाने   नहीं   आते तन्हाई   की   वो   हद   है   के   साया   भी   नहीं   साथ वो   ख़्वाब   भी   अब   हम   को   रुलाने   नहीं   आते मालूम   जो   होती   हमें   उल्फ़त   की   हक़ीक़त हम   ख़्वाब   यहाँ   अपने   गँवाने   नहीं   आते बन   जाती   हैं   आईना   तमन्नाओं   का   अक्सर " आँखों   को   अभी   ख़्वाब ...

जो मुफ़्त में बंट रही हो इंग्लिश , तो क्या हलाल ओ हराम साहेब

जो   मुफ़्त   में   बंट रही   हो   इंग्लिश , तो   क्या   हलाल   ओ   हराम   साहेब " डटा   है   होटल   के   दर   पे   हर   इक , हमें   भी   दो   एक   जाम   साहेब " हज़ारे   की   बहती   गंगा   में   अब   नहा   रहे   बाबा   राम   साहेब हुआ   है   फैशन    में   मेंढकी   को , नया   नया   ये   ज़ुकाम   साहेब बरहना   होने   का    कॉमपेटीशन   ये दिलरुबाई के फ़ॉर्मूले जवान   शीला   हुई   है जब तो   है मुन्नी भी पक्का आम साहब कहीं   निगाहें , कहीं   निशाना   अगर है तो ये   सितम   भी   होगा नज़र   में   भर   कर   हसीन   जलवा , गिरे   ज़मीं   पर   धडाम   साहेब सितम   ये   महंगाई   का   तो देखो , कि रोटी ...

दिल में सैराबी का एहसास जगाना होगा

दिल   में   सैराबी   का   एहसास   जगाना   होगा थपकियाँ   दे   के   ज़रुरत   को   सुलाना   होगा अब   बने   या   न   बने , साथ   तो   ताउम्र   का   है अब   किसी   तौर   तो   क़िस्मत   से   निभाना   होगा आज   बंजर   है   ज़मीं   दिल   की , चलो   मान   लिया पत्थरों   में   भी   दबा   कोई   ख़ज़ाना   होगा रश्क   तारे   भी   करेंगे   मेरे   इन   अश्कों   पे जब   ये   सर   होगा   मेरा   और   तेरा शाना   होगा कब   तलक   काम   करेगी   ये   अदाकारी   भी एक   दिन   हम   को   ये   पर्दा   तो   गिराना   होगा तेरी   बदरूई   में   इतनी   है   कशिश   क्यूँ   आख़िर " ज़िन्दगी   आज...