माज़ी के अलम हाल को खाने नहीं आते
माज़ी के अलम हाल को खाने नहीं आते वापस तो पलट कर वो ज़माने नहीं आते कितना है बयाबान मेरी ज़ात का जंगल अरमाँ भी यहाँ शोर मचाने नहीं आते जो आँख को मोती मिले , लौटाएँ किसे हम क़र्ज़े ये अभी हम को चुकाने नहीं आते तन्हाई की वो हद है के साया भी नहीं साथ वो ख़्वाब भी अब हम को रुलाने नहीं आते मालूम जो होती हमें उल्फ़त की हक़ीक़त हम ख़्वाब यहाँ अपने गँवाने नहीं आते बन जाती हैं आईना तमन्नाओं का अक्सर " आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते " ماضی کے الم حال کو کھانے نہیں آتے واپس تو پلٹ کر وہ زمانے نہیں آتے کتنا ہے بیابان مری ذات کا جنگل ارماں بھی یہاں شور مچانے نہیں آتے جو آنکھ کو موتی ملے , لوٹائیں کسے ہم قرضے یہ ابھی ہم کو چکانے نہیں آتے تنہائی کی وہ حد ہے کہ سایہ