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Showing posts from December 31, 2018

अजनबी एहसास

है रात गुलाबी , सर्द हवा बेदार 1 हुआ है एक फुसूँ 2 बेचैन पलों के नरग़े 3 में मैं तनहा तनहा बैठी हूँ है ज़हन परेशाँ , बेकल दिल क्या जाने ये कैसी उलझन है खोई हूँ न जाने किस धुन में बस , जागते में भी सोई हूँ वीरान फ़ज़ा-ए-ज़हन में फिर आहट ये किसी की आती है रह रह के मुझे चौंकाती है रह रह के मुझे तडपाती है रह रह के तरब 4 के कानों में आती है न जाने किस की सदा अब आग लगी अब सर्द हुई वो आस जली वो दर्द बुझा कुछ यादें हैं   कुछ साए हैं कुछ बोलती सी तस्वीरें हैं कुछ अनजाने से बंधन हैं   कुछ अनदेखी ज़ंजीरें हैं   तन्हाई के नाज़ुक रेशम से तख़ ' ईल 5 शरारे 6 बुनती है कुछ गर्म तसव्वर लिखती है कुछ नर्म इशारे बुनती है होंटों प कभी खिंच जाती है इक नर्म तबस्सुम 7 की रेखा उंगली से ज़मीं पर खींचूँ कभी अनबोले तकल्लुम 8 की रेखा आँखों में कभी जुगनू चमकें पलकों प कभी शबनम महके जब याद की कलियाँ खिल जाएं   इक कर्ब 9 जले इक ग़म महके वो दूर उफ़क़ 10 की वादी में   सूरज ने बिखेरी है अफ़्शां 11 इस छेड़ से क्यूँ शरमाई शफ़क़ 12 सिन्द

मेरे महबूब, मेरे दोस्त, मेरी जान-ए-ग़ज़ल

मेरे महबूब , मेरे दोस्त , मेरी जान-ए-ग़ज़ल दो क़दम राह-ए-मोहब्बत में मेरे साथ भी चल दो घड़ी बैठ मेरे पास , कि मैं पढ़ लूँ ज़रा तेरी पेशानी प लिक्खा है मेरी ज़ीस्त का हल एक उम्मीद प उलझे हैं हर इक पेच से हम हौसला खोल ही देगा कभी तक़दीर के बल वक़्त की गर्द छुपा देती है हर एक निशाँ संग पर खींची लकीरें रहें कितनी भी अटल टूटे ख़्वाबों की ख़लिश 1 जान भी ले लेती है ख़्वाब दिखला के मुझे ऐ दिल-ए-बेताब न छल जी नहीं पाता है इंसान कभी बरसों में ज़िन्दगी करने को काफ़ी है कभी एक ही पल नूर और नार 2 का मैं रोज़ तमाशा देखूं ख़ूँचकाँ 3 शम्स 4 को तारीक 5 फ़िज़ा जाए निगल मार डाले न कहीं तुझ को ये तन्हाई का ज़हर दिल के वीरान अंधेरों से कभी यार निकल नौहाख़्वाँ 6 क्यूँ हुए "मुमताज़" सभी मुर्दा ख़याल मदफ़न 7 -ए-दिल में अजब कैसा ये हंगाम था कल 1- चुभन , 2- रौशनी और आग , 3- जिस से खून टपकता हो , 4- सूरज , 5- अंधेरा , 6- रोना पीटना , 7- क़ब्रिस्तान mere mehboob, mere dost, meri jaan e ghazal do qadam raah e mohabbat meN mere saath bhi chal do ghad