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Showing posts from May 14, 2019

लगा कर दिल की बाज़ी राहत-ओ-तस्कीन खो डालीं

लगा कर दिल की बाज़ी राहत-ओ-तस्कीन खो डालीं अनाड़ी है , वफ़ा के खेल में आँखें भिगो डालीं لگا کر دل کی بازی راحت و تسکین کھو ڈالیں اناڑی ہے، وفا کے کھیل میں آنکھیں بھگو ڈالیں कोई कोंपल तमन्ना की उभरती ही नहीं यारो यहाँ तन्हाइयों की कितनी फ़स्लें हम ने बो डालीं کوئی کونپل تمنا کی ابھرتی ہی نہیں یارو یہاں تنہائیوں کی کتنی فصلیں ہم نے بو ڈالیں सुनहरी सुबह की किरनों ने चूमा है उन्हें आ कर शब-ए-बेताब ने जो शबनमी लड़ियाँ पिरो डालीं سنہری صبح کی کرنوں نے چوما ہے انہیں آ کر شبِ بےتاب نے جو شبنمی لڑیاں پرو ڈالیں लिया है इंतक़ाम ऐसे भी अक्सर हम ने तूफ़ाँ से किनारों तक पहुँच कर कश्तियाँ ख़ुद ही डुबो डालीं لیا ہے انتقام ایسے بھی اکثر ہم نے طوفاں سے کناروں تک پہنچ کر کشتیاں خود ہی ڈبو ڈالیں मुझे तनहाई की सौग़ात दी , फिर मेरी ख़िल्वत के हर इक लम्हे में कितनी कर्ब की सदियाँ समो डालीं مجھے تنہائی کی سوغات دی، پھر میری خلوت کے ہر اک لمحے میں کتنی کرب کی صدیاں سمو ڈالیں कोई क़ीमत लगा पाया कहाँ इन की मुक़द्दर भी निगह ने सोज़न-ए-मिज़गाँ में जो लड़ियाँ पिरो डालीं ک