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ग़ज़ल - बातों में सौ-सौ ख़्वाब सजे थे, कितना सुनहरा था किरदार

बातों में सौ-सौ ख़्वाब सजे थे , कितना सुनहरा था किरदार जो थी नक़ाब के पीछे सूरत वो भी हुई ज़ाहिर इस बार BAATON MEN SAU SAU KHWAAB SAJE THE, KITNA SUNAHRA THA KIRDAAR JO THI NAQAAB KE PEECHHE SOORAT WO BHI HUI ZAAHIR IS BAAR आबले अपने पाँव के रो-रो करते हैं हर पल इसरार गुज़रेंगे कल भी लोग यहाँ से करते चलो राहें हमवार AABLE APNE PAANV KE RO RO KARTE HAIN HAR PAL ISRAAR GUZRENGE KAL BHI LOG YAHAN SE KARTE CHALO RAAHEN HAMWAAR सोई क़यामत नींद से उठ कर देख ले जैसे एक झलक प्यासी ज़मीन , झुलसते मंज़र , धूप में जलते हैं अशजार SOI QAYAAMAT NEEND SE UTH KE DEKH LE JAISE EK NAZAR PYAASI ZAMEEN JHULASTE MANZAR DHOOP MEN JALTE HAIN ASHJAAR कैसे कटेगा कल का उजाला , कैसे ढलेगी रात सियाह जागती आँखें देख रही हैं रात की वुस ’ अत के उस पार KAISE KATEGA KAL KA UJAALA KAISE DHALEGI RAAT SIYAAH JAAGTI AANKHEN DEKH RAHI HAIN RAAT KI WUS'AT KE US PAAR ले तो लिया है ख़ुद अपने सर जुर्म-ए-मोहब्बत , जुर्म-ए-ख़ुलूस कोस रहे हैं अब ख़ुद को ही , कर तो लिया हमने इक़रार LE