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Showing posts from October 14, 2018

भर गया अपनों से दिल, अब लोग अंजाने तलाश

भर गया अपनों से दिल , अब लोग अंजाने तलाश इस तअस्सुब की ज़मीं पर यार मैख़ाने तलाश है वही मुंसिफ़ , गवाह उस के , निज़ाम उस का मगर ख़ूँ शहादत देगा तू क़ातिल के दस्ताने तलाश दौर-ए-हाज़िर के सितम से किस लिए मायूस है जिन पे तेरा नाम हो वह रिज़्क़ के दाने तलाश गुम हुए सारे शनासा अजनबी है हर मक़ाम शहर हैं सुनसान अब ऐ यार वीराने तलाश आदमी के फ़ैल से शैतानियत है शर्मसार आदमीयत के नए अब कोई पैमाने तलाश जाने हम को ज़िन्दगी ने ये कहाँ पहुंचा दिया अजनबी बस्ती में कुछ चेहरे तो पहचाने तलाश मंदिर-ओ-मस्जिद तो अब “ मुमताज़ ” बेगाने हुए अब इबादत के लिए दिल के वो बुतख़ाने तलाश

खिलने लगे हैं ज़ख़्म जो गुलज़ार की तरह

खिलने लगे हैं ज़ख़्म जो गुलज़ार की तरह आँखों में फूल चुभने लगे ख़ार की तरह कब से निभाए जाते हैं मजबूरियाँ भी हम अब तो मोहब्बतें भी हुईं बार की तरह अब हर क़दम पे रखते हैं सूद - ओ - ज़ियाँ का पास रिश्ते निभाए जाते हैं ब्योपार की तरह दिल की किरच किरच से सजाया है ज़ीस्त को हम ग़म मनाते आये हैं त्योहार की तरह हर इक अमल है मौजिज़ा हर इक अदा कमाल कोई कहीं दिखाओ तो सरकार की तरह ऐ यार राह - ए - इश्क की रंगीनियाँ न पूछ " ज़ख़्म - ए - जिगर हुए लब - ओ - रुख़सार की तरह " " मुमताज़ " तीरगी है , घुटन है , सुकूत है दिल सर्द हो चुका है किसी ग़ार की तरह کھلنے   لگے   ہیں   زخم   جو   گلزار   کی   طرح آنکھوں   میں   پھول   چبھنے   لگے   خار   کی   طرح کب   سے   نبھاۓ   جاتے   ہیں   مجبوریاں   بھی   ہم اب   تو   محبتیں   بھی   ہوئیں   بار   کی   طرح اب   ہر   قدم   پہ   رکھتے   ہیں صود و   زیاں   کا   پاس رشتے   نبھاۓ   جاتے   ہی

दहशतों की आज़माइश में उतर जाते हैं लोग

दहशतों की आज़माइश में उतर जाते हैं लोग ज़ब्त की हर इन्तहा से जब गुज़र जाते हैं लोग क्या ज़रूरी है कि उन के हाथ में तलवार हो नेज़ा - ए - अलफ़ाज़ से भी वार कर जाते हैं लोग ज़िन्दगी की जुस्तजू करते हैं आसारों में और इन बयाबानों में कुछ रौनक़ सी धर जाते हैं लोग मैं घिरी अपनी थकन में सोचती हूँ कब से ये तेज़ तूफानों को कैसे पार कर जाते हैं लोग कहकशाँ में ढूँढ़ते फिरते हैं अब जा - ए - पनाह इस ज़मीं का ख़ून कर के अर्श पर जाते हैं लोग ख़ौफ़ गुज़रे हादसों का ऐसा तारी है कि अब आहटें आएँ किसी की तो भी डर जाते हैं लोग कोई तो होगी कशिश इस दिल के वीराने में भी चलते चलते इस जगह अक्सर ठहर जाते हैं लोग दौर - ए - हाज़िर में ज़बानों की कोई क़ीमत है क्या " पहले कर लेते हैं वादा फिर मुकर जाते हैं लोग " इक तमाशा बन गया ' मुमताज़ " हर इक हादसा इक तमाशा देखने को फिर उधर जाते हैं लोग دہشتو