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Showing posts from June 21, 2019

अश्क आँखों में, तो हाथों में ख़ला रक्खे हैं

अश्क आँखों में , तो हाथों में ख़ला रक्खे हैं हम हैं दीवाने , मुक़द्दर को ख़फ़ा रक्खे हैं खौफ़ है , यास है , अंदेशा है , मजबूरी है ज़हन-ओ-दिल पर कई दरबान बिठा रक्खे हैं हक़ की इक ज़र्ब पड़ेगी तो बिखर जाएंगे दिल में हसरत ने सितारे जो सजा रक्खे हैं खुल गई जो तो बिखर जाएगी रेज़ा रेज़ा बंद मुट्ठी में शिकस्ता सी अना रक्खे हैं वो जो करते हैं , वो करते हैं दिखा कर मुझ को लाख रंजिश हो , मगर पास मेरा रक्खे हैं सब्र की ढाल प् शमशीर-ए-मुसीबत झेलो वो , कि तकलीफ़ के पर्दे में जज़ा रक्खे हैं बदगुमानी का तो शेवा ही यही है यारो हम को इस ने भी कई ख़्वाब दिखा रक्खे हैं अब कहाँ पहले सी "मुमताज़" वो शान-ओ-शौकत हो गए ख़ाक , मगर नाम बड़ा रक्खे हैं ख़ला- ख़ालीपन , यास- निराशा , ज़र्ब- चोट , शिकस्ता- टूटा फूटा , पास- खयाल , शमशीर- तलवार , जज़ा- नेकी का बदला , बदगुमानी- ग़लत फ़हमी , शेवा- दस्तूर