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Showing posts from July 12, 2019

ज़हन-ओ-दिल पर इश्क़ का जादू नज़र आने लगे

ज़हन-ओ-दिल पर इश्क़ का जादू नज़र आने लगे हो मोअत्तर दीद और ख़ुशबू नज़र आने लगे बात भी हम डर के करते हैं , कि अब किस बात में   जाने किस को कौन सा पहलू नज़र आने लगे ढालना होगा पसीने में लहू को इस तरह बख़्त पर इंसान का क़ाबू नज़र आने लगे ऐसा लगता है कि अब हर तीरगी छंट जाएगी आज फिर उम्मीद के जुगनू नज़र आने लगे जाग उठी शैतानियत , अब नेकियों की ख़ैर हो हर तरफ़ ख़ंजर ब कफ़ साधू नज़र आने लगे आ गई शायद वही मंज़िल मोहब्बत की , जहाँ उस का ही चेहरा हमें हर सू नज़र आने लगे एक बस इंसानियत नायाब है इस देश में अब यहाँ बस मुस्लिम-ओ-हिन्दू नज़र आने लगे इस क़दर खो जाए तेरी ज़ात में मेरा वजूद " काश ये भी हो कि मुझ में तू नज़र आने लगे" जब बरहना रक्स पर आमादा हो फ़ितना गरी हर तरफ़ "मुमताज़" हा-ओ-हू नज़र आने लगे मोअत्तर – ख़ुशबू में तर , दीद – दृष्टि , बख़्त – भाग्य , तीरगी – अँधेरा , ख़ंजर ब कफ़ – हाथ में ख़ंजर लिए , हर सू – हर तरफ़ , नायाब – दुर्लभ , बरहना – वस्त्रहीन , रक्स – नृत्य , फ़ितना गरी – फ़साद फैलाने की प्रवृत्ति , हा-ओ-हू – रोना पीटना zeh