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Showing posts from January 16, 2019

रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है

रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है ये अँधेरा शब ए तन्हाई का जलता क्यूँ है अश्क शबनम के यही करते हैं हर रोज़ सवाल गोद में शब की अँधेरा ये पिघलता क्यूँ है कोख में क़त्ल किये जाने की क्यूँ दी है सज़ा बाग़बाँ अपनी ही कलियों को कुचलता क्यूँ है मस्लेहत क़ैद रखेगी मुझे आख़िर कब तक ये जुनूँ रूप बदल कर मुझे छलता क्यूँ है ग़म के तेज़ाब से एहसास की सींची हैं जड़ें फिर तमन्ना का शजर आज भी फलता क्यूँ है क़ैद कर लेती है क्यूँ नूर को तारीकी - ए - शब बूढ़े सूरज को उफ़क़ रोज़ निगलता क्यूँ है ज़ेर - ओ - बम गर्दिश - ए - हालात के क्या हैं आख़िर आसमाँ रोज़ नए रंग बदलता क्यूँ है क़तरे सीमाब के "मुमताज़" न हाथ आएँगे दिल अबस नारसा हसरत प् मचलता क्यूँ है शजर – पेड़ , तारीकी-ए-शब – रात का अँधेरा , उफ़क़ – क्षितिज , ज़ेर - ओ - बम – ऊँच नीच , सीमाब – पारा , अबस – बेकार , नारसा – जिस की पहुँच न हो roz ehsaas ye angaaroN meN dhalta kyuN hai ye andhera shab e tanhaai ka jalta kyuN hai ashk shabnam ke yahi karte haiN har roz sawaal god meN shab ki andhera ye

एक ग़ज़ल केजरीवाल की नज़्र

थोडा ज़ाहिर किया हक़ , थोडा छुपाया तुम ने इक बंदरिया की तरह सच को नचाया तुम ने मुल्क को यूँ भी लगा है ये सियासत का जुज़ाम हो गया जिस्म लहू ऐसे खुजाया तुम ने खुल के अफ़सोस करो , ग़ैर प् इलज़ाम धरो जल रहा था जो चमन , क्यूँ न बुझाया तुम ने वो भी बतलाओ ज़रा जनता को ऐ सच के अमीन पद प् रहते हुए जो कुछ भी है खाया तुम ने इन की दुम थाम , किया पार सियासत का सिरात और अब कर दिया अन्ना को पराया तुम ने रह गईं अपना सा मुंह ले के किरन बेदी भी अपने रस्ते से उन्हें ख़ूब हटाया तुम ने वोट भी चंद मिलें तुम को तो कुछ बात भी है शोर तो खूब बहरहाल मचाया तुम ने     जुज़ाम - कोढ़,    सिरात - वैतरिणी