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Showing posts from December 18, 2018

दहकती आरज़ू के हाथ में ज़ुल्मत का कासा है

दहकती आरज़ू के हाथ में ज़ुल्मत का कासा है थकी बीनाई का अब बंद आँखों में बसेरा है बिखरती रौशनी की क़ैद में ये किस का साया है मेरे दिल में कोई परछाईं है , जो अब भी ज़िंदा है है सूरत जानी पहचानी , मगर दिल नाशानासा है मेरे दर पर जो साइल है , कोई तो इस से रिश्ता है न जाने क्यूँ नज़ारों से भी वहशत होती जाती है बहुत रंगीन है दुनिया , मगर हर रंग फीका है दिल ए हस्सास जाने क्यूँ तड़प जाता है रह रह कर अगर छाला नहीं कोई तो फिर ये दर्द कैसा है बना कर बुत मुझे मेरी परस्तिश कर रहे हैं सब मेरी मजबूरियों ने मुझ को ये ऐज़ाज़ बख्शा है नसीब और वक़्त ने इस पर लिखे हैं तब्सिरे कितने तबअ का मौजिज़ा देखो , वरक़ ये फिर भी सादा है निगाहों ने लगा रक्खी है पाबंदी , मगर फिर भी दरीचा खोल कर इक ख़्वाब ने चुपके से झाँका है मोहब्बत का हर इक लम्हा बहुत   दिलचस्प है माना मगर " मुमताज़ " मेरी वहशतों का रंग गहरा है    دہکتی آرزو کے ہاتھ میں ظلمت کا کاسہ ہے تھکی بینائی کا اب بند آنکھوں میں بسیرا ہے بکھرتی روشنی کی قید میں یہ کس کا سایہ ہے مرے دل میں کوئی

अजमेरी क़तए

अनवार से चमकती हैं रोज़े की जालियाँ अजमेर पर बरसती हैं ने ’ मत की बदलियाँ दिन रात बंट रहा है उतारा हुसैन का मंगते पसारे आए हैं हाजत की झोलियाँ निखरा है सुर्ख़ फूलों से ख़्वाजा का ये मज़ार ख़ुशबू से महका महका है सरकार का दयार वहदानियत का छाया है चारों तरफ ख़ुमार गाते हैं झूम झूम के ख़्वाजा के जाँ निसार ख़्वाजा पिया के रोज़े पे ज़ौ की बहार है दीदार हो गया है तो दिल को क़रार है हर ख़ास-ओ-आम लाया है नज़राना इश्क़ का सरकार ख़्वाजा जी पे ख़ुदाई निसार है ख़्वाजा पिया का इश्क़ असर मुझ पे कर गया तस्वीर-ए-ज़िन्दगी में धनक रंग भर गया ख़्वाजा पिया का नूर जो दिल में उतर गया नज़र-ए-करम से पल में मुक़द्दर सँवर गया हम को तो ख़्वाजा प्यारे की निस्बत से काम है सरकार ख़्वाजा जी का ज़माना ग़ुलाम है ऊँची है शान आप की आला मक़ाम है सारा जहाँ है मुक़्तदी ख़्वाजा इमाम है हम दास्तान-ए-ग़म जो पिया को सुनाएँगे आए हैं अश्क ले के ख़ुशी ले के जाएँगे देगा ख़ुदा मुराद जो ख़्वाजा दिलाएँगे अपनी मुराद हम तो इसी दर से पाएँगे ख़्वाजा के आस्ताने पे वहदत को नाज़ है है बेख़ुदी निसार अक़ीदत को नाज़ ह

ज़मीन-ए-दिल पे यादों का हसीं मौसम निकलता है

ज़मीन-ए-दिल पे यादों का हसीं मौसम निकलता है हमेशा होती है बारिश , जो वो एल्बम निकलता है लहू को ढालना पड़ता है मेहनत से पसीने में बड़ी मुश्किल से उलझी ज़िन्दगी का ख़म 1 निकलता है तरक़्क़ी के तक़ाज़ों के तले ऐसा दबा है वो मरीज़-ए-ज़िन्दगी का रफ़्ता रफ़्ता दम निकलता है मोहब्बत नफ़रतों में आजकल हल 2 होती जाती है लहू रिश्तों का होगा , अब ज़ुबां से सम 3 निकलता है हज़ारों वार कर कर के निचोड़ा है लहू पहले जिगर के ज़ख़्म पर मलने को अब मरहम निकलता है ज़रा एड़ी की जुम्बिश 4 से ज़मीं मुंह खोल देती है जो शिद्दत 5 तश्नगी 6 में हो , तो फिर ज़मज़म 7 निकलता है ज़रा सी बात की कितनी सफ़ाई दे रहे हैं वो मगर मतलब तो हर इक बात का मुबहम 8 निकलता है वतन के ज़र्रे ज़र्रे को पिलाया है लहू हम ने " ये रोना है कि अब ख़ून-ए-जिगर भी कम निकलता है" ये जुमला हम नहीं , अक्सर सभी एहबाब 9 कहते हैं अजी "मुमताज़" के अशआर 10 से रेशम निकलता है 1. उलझन , 2. Mix, 3. ज़हर , 4. हरकत , 5. तेज़ी , 6. प्यास , 7. मक्का में मौजूद मुसलमानों का पवित्र कुआँ , 8

अजमेर वाले ख़्वाजा कर दो करम ख़ुदारा

अजमेर वाले ख़्वाजा कर दो करम ख़ुदारा चमका दो आज मेरी तक़दीर का सितारा दुनिया में मुफ़लिसों का कोई नहीं सहारा जाएंगे अब कहाँ हम दामन यहीं पसारा सदक़ा नबी का मुझ को ख़्वाजा पिया अता हो झोली में मेरी भर दो हस्नैन का उतारा छंट जाए मेरे दिल से बातिल का सब अंधेरा नज़र-ए-करम का ख़्वाजा हो जाए इक इशारा अब तुम नहीं सुनोगे तो कौन फिर सुनेगा आ कर तुम्हारे दर पर मँगतों ने है पुकारा इक पल में दूर कर दी मेरी शिकस्ता हाली क़िस्मत मेरी बना दी ये है करम तुम्हारा कब से खड़े हैं दर पर हम रंज-ओ-ग़म के मारे इब्न-ए-सख़ी हो ख़्वाजा दामन भरो हमारा पहुंचा दिया है मुझ को क़िस्मत ने तेरे दर पर अब मेरी ज़िंदगी को मिल जाएगा सहारा आए हैं तेरे दर पर तक़दीर के सताए टूटे हुए दिलों को तेरे दर का है सहारा तूफ़ान में फंसी है मेरी शिकस्ता कश्ती कश्ती को मेरी ख़्वाजा दिखलाओ अब किनारा

हर सवाली का है नारा पिया ग़ैबन बाबा

हर सवाली का है नारा पिया ग़ैबन बाबा मोरबी में है गुज़ारा पिया ग़ैबन बाबा मिट गई पल में मेरी सारी मुसीबत यारो जब अक़ीदत से पुकारा पिया ग़ैबन बाबा कब से हैं दर पे पड़े फूटा मुक़द्दर ले कर अब करम कर दो ख़ुदारा पिया ग़ैबन बाबा हम कभी उठ के न जाएंगे तुम्हारे दर से है यक़ीं तुम पे हमारा   पिया ग़ैबन बाबा दर से साइल न तुम्हारे कभी ख़ाली लौटा ये शरफ़ भी है तुम्हारा पिया ग़ैबन बाबा मेरी किस्मत ने बहुत ख़्वार किया है मुझ को मेरा चमका दो सितारा पिया ग़ैबन बाबा साया रहमत का मेरे सर पे रहा है हर दम तेरा एहसान है सारा पिया ग़ैबन बाबा मोरबी वाले पिया बिगड़ी बना दो मेरी इक ज़रा कर दो इशारा पिया ग़ैबन बाबा मेरी तक़दीर की कश्ती है भँवर में उलझी मुझ को मिल जाए किनारा पिया ग़ैबन बाबा डाल दे झोली में हस्नैन-ओ-अली का सदक़ा तेरे मँगतों ने पुकारा पिया ग़ैबन बाबा