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Showing posts from February 17, 2018

नज़्म - उम्मीद (امید)

मैं तेरी मुंतज़िर ताउम्र जानाँ रह भी सकती हूँ हर इक रंज-ओ-अलम हर इक मुसीबत सह भी सकती हूँ है इसमें ज़िंदगी , मुझको ये मरना भी गवारा है तुम्हारी इक नज़र जानाँ मेरे दिल का सहारा है میں تیری منتظر تاعمر جاناں رہ بھی سکتی ہوں ہر اک رنج و الم ہر اک مصیبت سہ بھی سکتی ہوں ہے اس میں زندگی، مجھ کو یہ مرنا بھی گوارہ ہے تمھاری اک نظر جاناں مرے دل کا سہارا ہے रिहा हो कर तुम्हारी क़ैद से आख़िर कहाँ जाऊँ तुम्हारा साथ हो तो आस्माँ धरती पे ले आऊँ तसव्वर की ज़मीं का गोशा गोशा तुमने घेरा है तुम्हारे रास्ते की ख़ाक में मेरा बसेरा है رہا ہو کر تمھاری قید سے آخر کہاں جاؤں تمہارا سااتھ ہو تو آسماں دھرتی پہ لے آؤں تصور کی زمیں کا گوشہ گوشہ تم نے گھیرا ہے تمہارے راستے کی خاک میں میرا بسیرا ہے बुझाऊँ जितना आतिश इश्क़ की उतना भड़कती है तुम्हारी जुस्तजू में ज़िंदगी जानाँ धड़कती है मेरी राहों में ताहद्द-ए-नज़र उल्फ़त ही उल्फ़त है बताऊँ क्या , तुम्हारे हिज्र में भी कितनी लज़्ज़त है ज़ुबाँ से रेशमी यादों के क़तरे चाट लेती हूँ ये घड़ियाँ हिज्र की उम्मीद से मैं काट लेती हूँ بجھاؤ