ज़ख़्मी परों की उड़ान - अदबी किरन
पर सलामत हों तो उड़ना कोई बड़ा काम नहीं है । बात तो तब है जब ज़ख़्मी परों से आसमान की ऊँचाइयाँ छूने का हौसला किया जाए । अदबी किरन इस हौसले का साकार रूप है । यह हौसला , जो यूसुफ़ खान साहिल में कूट कूट कर भरा हुआ है । यूसुफ़ ख़ान की उम्र अभी मात्र 25 वर्ष की है । उस पर तक़दीर का सितम यह कि वह अपाहिज हैं । जी हाँ ! 3 वर्ष की उम्र में उन्हें बुख़ार हुआ , और वह बुख़ार ऐसा मनहूस था कि उन्हें हमेशा के लिए अपाहिज बना गया । लाख इलाज के बावजूद उन के पाँव न ठीक होने थे , न हुए । वे हमेशा के लिए व्हील चेयर के क़ैदी बन गए । क़िस्मत पर किसी का बस नहीं चलता । समय अपनी ही चाल से चलता है । लोगों को समय के साथ क़दम मिला कर चलना पड़ता है । चाहे उत्साह से चलें , या गिरते , पड़ते , हाँफते , लड़खड़ाते । जो लोग इस कोशिश में कामयाब हो जाते हैं , वे अपनी मंज़िल पा लेते हैं । जो गिर पड़ते हैं , वक़्त उन्हें ठुकराता हुआ आगे बढ़ जाता है । कोई उस के साथ चल पाएगा या नहीं , इस की परवाह वक़्त को कहाँ । तो बस , यूसुफ़ ख़ान भी वक़्त से क़दम मिलाने की कोशिश में यहाँ तक आ पहुंचे , कि आज ग़रीब बच्चों के लिए एक स्कूल चला रहे...