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Showing posts from October 11, 2018

उन की मर्ज़ी जो मोहब्बत को अता कहते हैं

उन की मर्ज़ी जो मोहब्बत को अता कहते हैं हम तो मजबूर तमन्ना को वफ़ा कहते हैं ज़ीस्त ही जब कि सरासर हो अज़ीयत तो फिर मौत को भी ग़म-ए-हस्ती की दवा कहते हैं खाक को सर पे उठाए जो फिरा करते हैं क्या अजब लोग हैं मिट्टी को ख़ुदा कहते हैं कहने वालों को तो कुछ चाहिए कहने के लिए क्या हुआ जो हमें कुछ लोग बुरा कहते हैं अपनी ठोकर पे रहा सारे ज़माने का निज़ाम हम फ़क़ीरों का है अंदाज़ जुदा , कहते हैं ज़िन्दगी से भी नहीं सब को मोहब्बत यारो साँस लेने को भी कुछ लोग सज़ा कहते हैं आज कह डाली है हर तल्ख़ हक़ीक़त उन से देखना ये है कि "मुमताज़" वो क्या कहते हैं  

मेरी गुस्ताख़ हसरत से ग़मों को सख़्त हैरत है

मेरी   गुस्ताख़ हसरत   से   ग़मों को   सख़्त हैरत   है उधर   बेचैन   है   क़ुदरत , इधर   गर्दिश   में   ख़ल्क़त है तड़प   कर   आह   करना   भी   मोहब्बत   में   बग़ावत है करे   फ़रियाद , सर   फोड़े , यहाँ   किस   को   इजाज़त   है मुझे   अपने   जुनूँ   पर   क्यूँ   न   आख़िर हो   ग़ुरूर इतना है तेरा ज़ुल्म गर दायम तो   मेरी   ज़िद   भी   मुसबत   है हर इक गुल   खिलखिलाने   के   लिए   बेताब   है   कब   से बहारों   के   त ' अक्क़ुब में   अभी   मसरूफ़ निकहत है तमन्ना   के   अलीलों   की   तड़प   देखी   नहीं   जाती कोई   दरमाँ नहीं   मिलता , परेशानी   में   हिकमत   है हमेशा   हुस्न   यूँ   भी   झुक   गया   है   इश्क़   के   आगे नज़र में क़ैद   हसरत से   ही   तो   जलवों   की   ज़ीनत   है ख़लील   ए   नातवां   को   आतिश   ए   नमरूद   से डर क्या त ' अस्सुब   सर   ब सजदा   है , मोहब्बत   की   करामत   है मोहब्बत है तो हस्त - ओ - बूद क्या , दिल क्या , अना कैसी " इबादत   और   ब क़द्र - ए - होश ? तौहीन - ए - इबा

जूनून सा है , कभी इन्क़ेलाब जैसा है

जूनून   सा   है , कभी   इन्क़ेलाब जैसा   है हर   इक   नज़ारा   रह - ए - दिल   का   ख़्वाब   जैसा   है मैं   इस   सराब   ए   तज़बज़ुब में   कब   तलक   भटकूँ तेरा   ये   लुत्फ़ - ओ - करम   भी   अज़ाब   जैसा   है लगी   है   अब्र   को   शायद   वो   मस्त   मस्त   नज़र जो   अब   के   बरसा   है   पानी , शराब   जैसा   है न   जाने   कैसे   उठे , कैसे , कब , कहाँ   टूटे ये   हस्त - ओ - बूद   का   आलम   हुबाब   जैसा   है ज़रा   सी   बात   पे   हलचल   सी   मचने   लगती   है ये   दिल   भी   क्या   है , किसी   सतह - ए - आब   जैसा   है मुझे   गुनाह - ए - मोहब्बत   का   ऐतराफ़   तो   है गुनाह   ये   भी   मगर   इक   सवाब   जैसा   है मेरे   सवाल   के   बदले   वो   यूँ   सवाल   करे कि   हर   सवाल   भी   गोया   जवाब   जैसा   है हर   एक   क़तरा   बड़ी   तशनगी   समेटे   है " ये   क्या   सितम   है   कि   दरिया   सराब   जैसा   है " न   कोई   रब्त , न   कुछ   सिलसिला   हवादिस   में सफ़र   हयात   का   " मुमताज़ " ख़्वाब   जैसा