नज़्म - नाउम्मीद
ज़िन्दगी
मुस्तक़िल
सोज़ है, दर्द है
दर्द
ऐसा
कि
जिसकी दवा भी नहीं
और
राहें मोहब्बत की
सुनसान
हैं
कोई
साथी
कोई
हमनवा भी नहीं
तन्हा
तन्हा सफ़र कब तलक कीजिये
हमसफ़र
कोई ग़म के सिवा भी नहीं
कुछ
तो
वीरानी-ए-रोज़-ओ-शब
दूर
हो
ज़ख़्म
ही कोई हमको नया फिर मिले
हम
जो
इस आस पर
घर
से निकले
तो
अब
पेश
आता कोई हादसा भी नहीं
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