हर दिल है बदगुमान, अना हुक्मराँ है अब


हर दिल है बदगुमान, अना हुक्मराँ है अब
रिश्तों के रखरखाव में ख़ाली ज़ियाँ है अब
ہر دل ہے بدگمان، انا حکمراں ہے اب
رشتوں کے رکھ رکھاؤ میں خالی زیاں ہے اب

देखा उन्हें तो दिल का समाँ और हो गया
ख़ामोश है ज़ुबाँ, प नज़र में ज़ुबाँ है अब
دیکھا اُنہیں تو دل کا سماں اور ہو گیا
خاموش ہے زباں پہ نظر میں زباں ہے اب

वो छोड़ कर गया है सराब-ए-उम्मीद में
लम्हों का तूल ज़ेहन पे बार-ए-गराँ है अब
وہ چھوڑ کر گیا ہے سرابِ امید میں
لمحوں کا طول زہن پہ بارِ گراں ہے اب

परवाज़ बस ख़याल की मंज़िल पे है अभी
हाथों में हर शिकारी के देखो कमाँ है अब
پرواز بس خیال کی منزل پہ ہے ابھی
ہاتھوں میں ہر شکاری کے دیکھو کماں ہے اب

बचपन में जो बसाया था साहिल की रेत पर
वो शहर हसरतों का, बता दे, कहाँ है अब
بچپن میں جو بنایا تھا ساحل کی ریت پر
وہ شہر حسرتوں کا بتا دے کہاں ہے اب

क्या जाने क्यूँ बहार भी नज़रें बचा गई
गुलशन के हर शजर पे ख़िज़ाँ ही ख़िज़ाँ है अब
کیا جانے کیوں بہار بھی نظریں بچا گئی
گلشن کے ہر شجر پہ خزاں ہی خزاں ہے اب

अपनी तमाज़तों से मेरे पर जलाए क्यूँ
इतना उदास किसके लिए आस्माँ है अब
اپنی تمازتوں سے مرے پر جلائے کیوں
اِتنا اُداس کس کے لئے آسماں ہے اب

हालांकि हार बैठे हैं हिम्मत की बाज़ियाँ
मुमताज़ आरज़ू का जहाँ जाविदाँ है अब
حالانکہ ہار بیٹھے ہین ہمت کی بازیاں
ممتازؔ آرزو کا جہاں جاوداں ہے اب

अना - अहं, ज़ियाँ नुक़सान, सराब-ए-उम्मीद उम्मीद की मृगतृष्णा, लम्हों का-पलों का, तूल-फैलाव, बार-ए-गरां-भारी बोझ, परवाज़-उड़ान, कमां-धनुष, साहिल-किनारा, शजर-पेड़, ख़िज़ाँ-पतझड़, तमाज़त-तपन, आरज़ू-इच्छा, जाविदाँ-अमर

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