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Showing posts from July 28, 2018

ख़ुश हो रहा है वो जो मोहब्बत को मार के

ख़ुश हो   रहा   है   वो   जो   मोहब्बत    को   मार   के ढूँढा किये   हैं   हम   भी   तो   रस्ते   फ़रार   के छींटे   उरूसी   कैसे   ये   बिखरे   हैं   चार   सू अब   के   खिज़ां में   रंग   हैं   फ़स्ल   ए बहार   के कब   तक   न   जाने   देते   रहेंगे   अज़ीयतें कुछ   रह   गए   हैं   ज़ख्म   में   टुकड़े   जो   ख़ार   के पल   पल   रहे   हिसार   में   इक   बेहिसी   के   हम   एहसान   हम   पे   कितने   हैं   एहद   ए   क़रार   के काँटा   सा   एक   चुभता   था   कब   से   जो   ज़ेहन   में काग़ज़   पे   रख   दिया   है   वही   सच   उतार   के हम   एक   गाम   ...

दुनिया की हम को फ़िक्र, न सूद ओ ज़ियाँ की है

दुनिया   की   हम   को   फ़िक्र ,   न सूद   ओ   ज़ियाँ की   है हम   को   तो   बस   तलाश   तेरे   आस्तां   की   है झटके   में   जिस   ने   तोड़ी   है   ज़ंजीर   पाँव   की ये   जुरअत   ए   निजात   इसी   नातवाँ   की   है जिस   की   शिकस्ता पाई   को   ठुकरा   गए   थे   तुम अब   क्यूँ   तुम्हें   तलाश   उसी   बेनिशाँ   की   है फूँका   जो   बर्क़ - ए - वहम   ने , गुलशन   वफ़ा   का   था जो   ख़ाक   बच   गई   है , मेरे   आशियाँ   की   है कहते      हैं    दिल    की   बात   इशारों   में   हम   भी   यूँ फ़रियाद   है   फ़लाँ   की , शिकायत   फ़लाँ   की   है सरहद   यहीं ...

ख़ामुशी से यूँ भी अक्सर हो गए

ख़ामुशी   से   यूँ   भी   अक्सर   हो   गए हादसे   अन्दर   ही   अन्दर   हो   गए कल   झुके   रहते   थे   क़दमों   में   जो   सब आज   वो   मेरे   बराबर   हो   गए हैं   मुसाफ़िर   ख़ुद   ही   अंधी   राह   के आप   कब   से   मेरे   रहबर   हो   गए मुन्तज़िर   है   सरफ़रोशी   का   जुनूँ ख़त्म   अब   तो   सारे   पत्थर   हो   गए खुशबुओं   का   वो   कोई   सैलाब   था उस   को   छू   कर   हम   भी   अम्बर   हो   गए बढ़   गई   इतनी   तमाज़त   दर्द   की ख़ुश्क   अशकों के     समंदर   हो   गए वो   भी   है   " मुमताज़ " ख़ुद   से   बदगुमाँ वहशतों   के   हम   भी   ख़ूग...