ख़ुश हो रहा है वो जो मोहब्बत को मार के
ख़ुश हो रहा है वो जो मोहब्बत को मार के ढूँढा किये हैं हम भी तो रस्ते फ़रार के छींटे उरूसी कैसे ये बिखरे हैं चार सू अब के खिज़ां में रंग हैं फ़स्ल ए बहार के कब तक न जाने देते रहेंगे अज़ीयतें कुछ रह गए हैं ज़ख्म में टुकड़े जो ख़ार के पल पल रहे हिसार में इक बेहिसी के हम एहसान हम पे कितने हैं एहद ए क़रार के काँटा सा एक चुभता था कब से जो ज़ेहन में काग़ज़ पे रख दिया है वही सच उतार के हम एक गाम भी न फिर आगे बढ़ा सके क़दमों में उस ने डाल दी बेड़ी , पुकार के हो ही चुका ये इम्तेहाँ , मर ही चुका ज़मीर अब क्या मिलेगा ज़ख़्मी तमन्ना को मार के दानिस्ता हम ने उस को जिताया है ये भी दांव " मुमताज़ " हम तो उस को भी आए हैं हार के फ़रार = भागना , उरूसी = लाल रंग का , चार सू = चारों तरफ़ , खिज़ा