वो दिलरुबाई के फ़न में कमाल रखता है

नज़र में तेग़ तो ज़ुल्फ़ों में जाल रखता है
वो दिलरुबाई के फ़न में कमाल रखता है

कुछ ऐसी लत है उसे ज़हर की कि इसके लिए
वो आस्तीन में साँपों को पाल रखता है

उठे तो जोश-ए-जुनूँ अर्श का बोसा ले ले
रगों के ख़ूँ में वो ऐसा उबाल रखता है

जहान-ए-मक्र-ओ-दग़ा में वो कामयाब है बस
जो बेवफ़ाई के फ़न में मिसाल रखता है

नज़र मिला के कोई कैसे उससे बात करे
वो हर नज़र में हज़ारों सवाल रखता है

सुबूत देता है जलते शरर की ठंडक का
जिगर के ज़ख़्म पे जब अपना गाल रखता है

है एक सैल-ए-रवाँ उसकी ज़िन्दगी यारो
वो अपनी जाँ पे हज़ारों वबाल रखता है

अदू से मिलता है मुमताज़ वो गले हँस कर
वो हर शआर में इक ऐतदाल रखता है


तेग़ तलवार, दिलरुबाई के फ़न में दिल चुराने की कला में, बोसा चुंबन, जहान-ए-मक्र-ओ-दग़ा मक्कारी और धोखे की दुनिया, शरर अंगारा, सैल-ए-रवाँ बहता पानी, वबाल मुसीबत, अदू दुश्मन,  शआर चलन, ऐतदाल दरमियाना रवैया

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