मेरे सफ़ीने को तूफ़ाँ की नज़र-ए-करम ने देख लिया

मेरे सफ़ीने को तूफ़ाँ की नज़र-ए-करम ने देख लिया
छुपते फिरे हम लाख मगर मौज ए बरहम ने देख लिया

उम्दा था मलबूस भी और अलफ़ाज़ में भी आराइश थी
जो था पस-ए-पर्दा बद चेहरा, वो भी हम ने देख लिया

शोर मचाता सन्नाटा था, जाँ लेवा ख़ामोशी थी
कैसे बताएं कौन सा मंज़र उस इक दम ने देख लिया

दूर तलक हर पेड़ बरहना, पत्तों का रंग ज़र्द हुआ
क्यूँ इतना वीरान है आख़िर, क्या मौसम ने देख लिया

और भी नज़रें टेढ़ी कर लीं इन पेचीदा राहों ने
मेरी थकन का हाल ज़रा राहों के ख़म ने देख लिया

दहशत के इस खेल में आख़िर ख़ून के बदले क्या पाया
अब तो दरिंदा बन के भी नस्ल ए आदम ने देख लिया

दफ़्न था दिल की गहराई में जज़्बों का वो राज़ कहीं
हम ने छुपाया लाख मगर, ज़हन ए मोहकम ने देख लिया

फ़ासिद हो गई सारी इबादत, आज मेरा ईमान गया
हम को किस "मुमताज़" नज़र से आज सनम ने देख लिया

सफ़ीने को-नाव को, मौज ए बरहम-नाराज़ लहर, मलबूस-लिबास, अलफ़ाज़-शब्द, आराइश-सजावट, पस ए पर्दा-परदे के पीछे, बद चेहरा-खराब चेहरा, बरहना-नग्न, रुख़-चेहरा, ज़र्द-पीला, पेचीदा-घुमावदार, ख़म-घुमाव, नस्ल ए आदम-आदमी, जज़्बों का-भावनाओं का, ज़हन ए मोहकम-हुकूमत करने वाला दिमाग़, फ़ासिद-खराब, इबादत-पूजा, सनम-मूर्ति 

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