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बारिश

झमकता   झूमता   बरसा   है   पानी गरज   कर   हो   गए   आमादा   बादल   जंग   करने   को उतरती   आती   हैं   चांदी   की   लड़ियाँ   आसमानों   से इन्हीं   की   लय   पे   बिजली   रक्स   करती   है चमकती   है मचलती   है मचल   कर   जगमगाती   है मैं   खिड़की   पर   खड़ी   हूँ फुहारें   नर्म   नाज़ुक   सी मेरे   गालों   पे   बोसा   दे   रही   हैं और   दिल   मदहोश   होता   जा   रहा   है हवाएं   छेड़ती   हैं   ज़ुल्फ़   ए   बरहम   को ये   बारिश   कितनी   मुद्दत   बाद   आई   है ये   बारिश   आज   बरसों   बाद   आई   है jhamakta jhoomta barsa hai paani garaj kar ho gae aamaada baadal jang karne ko utarti aati haiN chaandi ki ladiyaN aasmaanoN se inhiN ki lay pe bijli raqs karti hai chamakti hai, machalti hai machal kar jagmagaati hai maiN khidki par khadi hooN phuhaareN narm nazuk si mere gaaloN pe bosa de rahi haiN aur dil madhosh hota jaa raha hai hawaaeN chhedti haiN zulf e barham ko ye baarish kitni muddat baad aai hai ye baarish aaj barsoN ba

जो शाम आती है जब उम्मीद का ख़ुर्शीद ढलता है

जो शाम आती है जब उम्मीद का ख़ुर्शीद 1 ढलता है महाज़-ए-तीरगी 2 पर इक दिया ख़ामोश जलता है अलम 3 को जज़्ब 4 कर लेते हैं तीरा शब 5 के सन्नाटे अकेलेपन में हर इक दर्द आँखों से पिघलता है बिलखते लाल की मजबूर माँ को कौन समझाए तही 6 बर्तन पकाने से कहीं बच्चा बहलता है ? अज़ीयत 7 बेहिसी 8 की रूह 9 का ख़ूँ 10 करती जाती है अँधेरा ज़ेहन 11 का उल्फ़त के सूरज को निगलता है लहू से लाल हो जाती है मिट्टी गुलसितानों की शजर 12 से तोड़ कर ये कौन कलियों को मसलता है कभी ये बेहिसी भी एक नेमत लगने लगती है हमें "मुमताज़" अब अपना हर इक एहसास खलता है 1- सूरज , 2- अँधेरे से जंग का मैदान , 3- दर्द , 4- सोख लेना , 5- अँधेरी रात , 6- ख़ाली , 7- तकलीफ़ , 8- भावना शून्यता , 9- आत्मा , 10- हत्या , 11- दिमाग़ , 12- वृक्ष جو شام آتی ہے جب امید کا خورشید ڈھلتا ہے مہاذِ تیرگی پر اک دیا خاموش جلتا ہے الم کو جزب کر لیتے ہیں تیرہ شب کے سناٹے اکیلے پن میں ہر اک درد آنکھوں سے پگھلتا ہے بلکھتے لال کی مجبور ماں کو کون سمجھائے تہی برتن پکانے سے کہیں بچہ بہلتا ہے؟ عذئی

जफ़ा परस्त है, ख़ुद सर है, क्या किया जाए

जफ़ा परस्त 1 है , ख़ुद सर 2 है , क्या किया जाए वो मेरी ज़ात 3 का महवर 4 है , क्या किया जाए बचा के रक्खें कहाँ ज़िंदगी का सरमाया 5 सितम के हाथ में ख़ंजर हैं क्या किया जाए चराग़-ए-ज़ीस्त 6 की लौ माँद पड़ती जाती है बदन भी अब मेरा लाग़र 7 है क्या किया जाए हमें तो पार उतरना है आज ही लेकिन ग़ज़ब 8 में आज समंदर है क्या किया जाए हज़ार उस को जिताने का शौक़ है उस को शिकस्त 9 का वही ख़ूगर 10 है क्या किया जाए फ़रार 11 ढूँढते आए हैं जिस से हम अब तक वो इम्तेहान तो सर पर है क्या किया जाए हटी है कहकशाँ 12 “मुमताज़” अपने महवर से ग़ज़ब में दावर-ए-महशर 13 है क्या किया जाए 1- बेवफ़ाई की पूजा करने वाला , 2- ज़िद्दी , 3- व्यक्तित्व , 4- धुरी , 5- पूँजी , 6- ज़िंदगी का दिया , 7- कमज़ोर , 8- ग़ुस्सा , 9 - मात , 10- आदी , 11- भागना , 12- आकाश गंगा , 13- महशर उठाने वाला (अल्लाह)

अपना चर्चा आम बहुत है

अपना चर्चा आम बहुत है अब दिल को आराम बहुत है रेशम वेश्म क्या करना है हम को इक एहराम 1 बहुत है तेरी   यादें , तेरा   तसव्वर करने को ये काम बहुत है चाहत वाहत , धड़कन वड़कन इस दिल में हंगाम बहुत है देखो तो इक दर्द मिला है सोचो तो ये दाम बहुत है क़िस्सा - ए - दिल दिलचस्प है , माना पर इस में इबहाम 2 बहुत है बस कुछ पल हमराह 3 चला वो समझो तो इक गाम 4 बहुत है हम यूँ भी "मुमताज़" 5 हैं , हम पर लोगों का इकराम 6 बहुत है 1- हज के दौरान पाहणी जाने वाली चादर , 2- अस्पष्टता , 3- साथ , 4- क़दम , 5- प्रतिष्ठित , 6- इज़्ज़त apna charcha aam bahot hai ab dil ko aaraam bahot hai resham wesham kya karna hai ham ko ik ehraam bahot hai teri yaadeN, tera tasawwar karne ko ye kaam bahot hai chaahat waahat, dhadkan wadkan is dil meN hangaam bahot hai dekho to ik dard mila hai socho to ye daam bahot hai qissa e dil dilchasp hai, maana par is meN ibhaam bahot hai bas kuchh pal hamraah raha wo samjho to ik g

फ़र्ज़ है, पास-ए-मोहब्बत है, वफ़ा है, शायद

फ़र्ज़ है , पास-ए-मोहब्बत है , वफ़ा है , शायद इस अज़ीयत 1 में तो कुछ और मज़ा है शायद दिल तो कहता है कि मेरी ही ख़ता है , शायद ज़हन कहता है कि ये खेल बड़ा है शायद पा 2 -ए-क़िस्मत पे जो ग़श 3 खा के गिरा है कोई ज़िन्दगी भर के सफ़र से वो थका है शायद जहाँ क़दमों के निशाँ हैं , वहाँ भीगी है ज़मीं दश्त-ए-सेहरा 4 में कोई आबला 5 पा है शायद धज्जियाँ जिस की फ़ज़ाओं में उडी जाती हैं झूट के तन पे ये रिश्तों की क़बा 6 है शायद ज़र्ब 7 देता है , मिटाता है , सितम ढाता है मेरे क़ातिल को मेरा राज़ पता है शायद खाए जाती है मेरी रूह 8 की सैराबी 9 को ये शब-ए-तार 10 तो मूसा का असा 11 है शायद रोज़ देता है सबक़ मुझ को नए हस्ती के मुझ में जो बोल रहा है , वो ख़ुदा है शायद शोर बातिन 12 में शब-ओ-रोज़ 13 उठा करता है ये मेरे दिल के धड़कने की सदा है शायद रू-ए-मग़रूर 14 पे लिक्खा है मेरी मात का राज़ उस ने "मुमताज़" मुझे जीत लिया है शायद 1- तकलीफ़ , 2- पाँव , 3- बेहोशी , 4- रेगिस्तान का जंगल , 5- छाला , 6- लिबास , 7- चोट , 8- आत्मा ,

दिल खोल के तडपाना, जी भर के सितम ढाना

दिल खोल के तडपाना , जी भर के सितम ढाना आता है कहाँ तुम को बीमार को बहलाना वो नर्म निगाहों से आरिज़ 1 का दहक उठना वो लम्स 2 की गर्मी से नस नस का पिघल जाना कुछ तो है जो हर कोई मुश्ताक़ 3 -ए-मोहब्बत है बेचैन   दिमाग़ों   का   है   इश्क़   ख़लल   माना बोहतान 4 शम ' अ पर क्यूँ , ये सोज़ 5 -ए-मोहब्बत है ख़ुद अपनी ही आतिश में जल जाता है परवाना इस अब्र 6 -ए-बहाराँ से फिर झूम के मय बरसे थोडा   जो   मचल   जाए ये फ़ितरत-ए-रिन्दाना 7 लो खोल ही दी अब तो ज़ंजीर-ए-वफ़ा   मैं   ने " जिस मोड़ पे जी चाहे चुपके से बिछड़ जाना" और एक ये भी.... ऐवान-ए-सियासत 8 में क्या क्या न तमाशा हो इन बूढ़े दिमाग़ों के उफ़!!! खेल ये तिफ़्लाना 9 1- गाल , 2- स्पर्श , 3- ख़्वाहिश मंद , 4- झूटा इल्ज़ाम , 5- दर्द , 6- बादल , 7- शराबी तबीयत , 8- राजनीति के पैरोकार , 9- बचकाने dil khol ke tadpaana, jee bhar ke sitam dhaana aata hai kahaN tum ko beemar ko behlaana wo narm nigaahoN se aariz ka dahk uthna wo lams ki garmi se nas nas ka pighal jaana k

अश्क पीने को शब-ओ-रोज़ अलम1 खाने को

अश्क पीने को शब-ओ-रोज़ अलम 1 खाने को हम जिये जाते हैं नित दर्द नया पाने को ज़िन्दगी जाने कहाँ छोड़ के हम को चल दी हम ज़रा देर जो बैठे यहाँ सुस्ताने को चल पड़ी थीं जो ये दिल छोड़ के सब उम्मीदें हसरतें दूर तलक आई थीं समझाने को एक मोती जो तेरी आँख से टपका है अभी मैं कहाँ रक्खूँ अब इस क़ीमती नज़राने को आज के दौर के बच्चे भी बड़े शातिर हैं अब सुने कौन अलिफ़ लैला के अफ़साने को डाल दी है जो तअस्सुब 2 ने दिलों में अपने मुद्दतें चाहिएँ इस गाँठ के सुलझाने को जिस को कहते हैं मोहब्बत ये ज़माने वाले इक खिलौना है दिल-ए-ज़ार 3 के बहलाने को कोई भी चीज़ कभी हस्ब-ए-ज़रूरत 4 न मिली आख़िरश 5 तोड़ दिया ज़ात के पैमाने को कोई हद ही नहीं "मुमताज़" तबाही की तो फिर हम भी आमादा हैं अब हद से गुज़र जाने को 1- दुख , 2- भेद-भाव , 3- दुखी दिल , 4- ज़रूरत के मुताबिक़ , 5- आख़िरकार اشک پینے کو شب و روز الم کھانے کو ہم جئے جاتے ہیں نت درد نیا پانے کو زندگی جانے کہاں چھوڑ کے ہم کو چل دی ہم ذرا دیر جہ بیٹھے یہاں سستانے کو چل پڑی تھیں جو یہ دل چھوڑ کے سب