हज़ारों राह में कोहसार हाइल करती जाती है
हज़ारों राह में कोहसार हाइल करती जाती है मेरी तक़दीर मुझ को लम्हा लम्हा आज़माती है कभी मर मर के जीता है , कभी जीने को मरता है यहाँ इंसान को उस की ही हसरत खाए जाती है बशर मजबूरियों के हाथ में बस इक खिलौना है नज़ारे कैसे कैसे मुफ़लिसी हर सू दिखाती है कोई पीता है ग़म , कोई लहू इंसाँ का पीता है ग़रीबी सर पटकती है , सियासत मुस्कराती है न जाने कितने चेहरे ओढ़ कर अब लोग मिलते हैं यहाँ इंसान से इंसानियत नज़रें चुराती है शिकस्ता पा हैं लेकिन हौसला हारा नहीं हम ने चलो यारो , सदा दे कर हमें मंज़िल बुलाती है चराग़ाँ यूँ भी होते हैं हमारे रास्ते अक्सर तमन्ना हर क़दम पर सैकड़ों शमएँ जलाती है ये किसकी आहटें “ मुमताज़ ” मेरे साथ चलती हैं तजल्ली रेज़ा रेज़ा कौन सी ख़िरमन से आती है