रक्षा बंधन


1.
फिर पीहर की सुध आई सखी
फिर श्रावणी का त्योहार है आया
उल्लास, उजास, प्रवास, सुवास के
अगणित रंग मनोहर लाया

सब सखियाँ बाबुल देस चलीं
पर नाम मेरे संदेस है आया
तुझे होवे बधाई कि भाई तेरा
इस देस की सरहद पर काम आया

मेरे हाथ की राखी भीग चली
इन आँखों ने जब जल बरसाया
मन बोला मेरे भैया तुम ने
रक्षा बंधन का फर्ज़ निभाया

2.
ऐ जवानों देश की धरती को तुम पे नाज़ है
हर बहन बेटी की, हर माँ की यही आवाज़ है
जागता है जब तलक सरहद पे अपना लाडला
छू नहीं सकती हमें कोई मुसीबत या बला
तुम हो रक्षक देश के, सरहद के पहरेदार हो
और रक्षा सूत्र के सच्चे तुम्हीं हक़दार हो

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