नई सुबह
ये इक एहसास मेरे दिल प दस्तक दे रहा है जो
ये मीठा दर्द सा अंगड़ाई मुझ में ले रहा है जो
बहारों की ये आहट जो मेरे गुलशन से आती है
तजल्ली रेज़ा रेज़ा कौन से ख़िरमन से आती है
फ़रेब-ए-ज़िन्दगी फिर रफ़्ता रफ़्ता खा रही हूँ मैं
न जाने कौन सी मंज़िल की जानिब जा रही हूँ मैं
नज़र जिस सिम्त डालूँ मैं, बहारें ही बहारें हैं
मेरे हर गाम से लिपटे हुए लाखों शरारे हैं
ये लगता है कि शिरियानों में बिजली रक़्स करती है
गुल-ए-तनहाई पर ये कौन तितली रक़्स करती है
हुई बेदार हर हसरत, उम्मीदें हाथ मलती हैं
तसव्वर की ज़मीं पर शबनमी बूँदें मचलती हैं
तख़य्युल की सभी शाख़ों प ख़्वाबों का बसेरा है
नया दिल है, नई मैं हूँ, नया सा ये सवेरा है
माशाअल्लाह बहुत ही उम्दा 👌
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