सदा मसरूर रहते हैं मोहब्बत के ये दीवाने
सदा मसरूर रहते हैं मोहब्बत के ये दीवाने
इसी जज़्बे में खुलते हैं न जाने कितने मैख़ाने
मुझे ईमान का दावा अगर हो भी तो कैसे हो
बना रक्खे हैं दिल में भी मोहब्बत ने जो बुतख़ाने
अभी माज़ी के ख़्वाबों को ज़रा ख़ामोश रहने दो
अभी तो क़ैद कर रक्खा है हम को फ़िक्र-ए-फ़र्दा ने
न जाने मोड़ कैसा आ गया है दिल की राहों में
सभी चेहरे परेशाँ हैं, सभी रस्ते हैं अंजाने
हज़ारों अजनबी साए लिपट कर रो पड़े हम से
हम आए थे यहाँ दो चार पल को राहतें पाने
ज़माने के तक़ाज़ों ने तराशा है मुझे कैसे
कि आईना भी मेरा अब मेरी सूरत न पहचाने
मेरी बेगानगी ने इस को भी तड़पा दिया आख़िर
तमन्ना कब से बैठी रो रही है मेरे सिरहाने
कोई जज़्बा न ग़म, बस बेहिसी ही बेहिसी है अब
हमें कैसी जगह पहुँचा दिया ज़ख़्मी तमन्ना ने
क़फ़स में छटपटाता है जुनूँ परवाज़ की ख़ातिर
तसव्वर बुन रहा है कितने ही बेबाक अफ़साने
जुनूँ के वास्ते “मुमताज़” हर महफ़िल में ख़िल्वत है
जहाँ दिल है, वहीं हम हैं, वहीं लाखों हैं वीराने
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