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ये माना, बेरुख़ी हम से यूँ ही फ़रमाओगे साहब

ये माना , बेरुख़ी हम से यूँ ही फ़रमाओगे साहब अकेले में मगर ग़ज़लें हमारी गाओगे साहब ये किसकी खोज में चोरी छुपे नज़रें भटकती है कोई जो पूछ बैठा , क्या उसे बतलाओगे साहब ये माना , हम तुम्हारी राह में दीवार हैं , लेकिन हमें ढा दोगे तो साया कहाँ फिर पाओगे साहब हमारे दर्द का शायद तुम्हें तब होगा अंदाज़ा जो तुम भी तीर कोई अपने दिल पर खाओगे साहब अभी तो कर रहे हो तुम बहुत तनहाई की ख़्वाहिश करोगे क्या जो तनहाई में भी घबराओगे साहब ये बेपरवाई , ये बेमेहरियाँ , ये बेरुख़ी पैहम तड़प जाओगे तुम भी जो हमें तड़पाओगे साहब जहाँ है ख़ुदग़रज़ ये क्या तुम्हारे नाज़ उठाएगा ये तेवर कजअदाई के किसे दिखलाओगे साहब सता कर हमको ख़ुश हो लो , मगर जब हम नहीं होंगे हमेशा वाहमों से ख़ुद को फिर बहलाओगे साहब चलो , हम तो बिलआख़िर कर ही लेंगे तर्क-ए-उलफ़त भी ये फिर कहते हैं हम , देखो , बहुत पछताओगे साहब तअल्लुक़ तो क़तअ कर ही चुके हो , ये भी बतला दो   ये लाश उजड़ी मोहब्बत की कहाँ दफ़नाओगे साहब बहार आएगी गुलशन में हमारे बाद भी लेकिन खिलेंगे फूल गुलशन में तो तुम कुम्हलाओगे स

गीत - ऐ ख़ुदा-ए-दो जहाँ

ऐ ख़ुदा-ए-दो जहाँ है ये कैसा इम्तेहाँ क्यूँ मुझे दे दी तमन्ना बेकराँ ये तेरी जादूगरी लूट कर ख़ुशियाँ मेरी मुँह छुपा कर खो गया है तू कहाँ क्यूँ मेरे दिल में जगाए आरज़ू के सिलसिले क्यूँ मेरी आँखों को बख़्शे ख़्वाब के ये क़ाफ़िले क्यूँ मेरे दिल के जहाँ को पारा पारा कर दिया और आँखों में मेरी फिर क्यूँ अँधेरा कर दिया लूट कर वो आरज़ू का कारवाँ खेलता है तू दिलों से तेरा ये दस्तूर है लेकिन ऐ मालिक ये दिल मेरा ग़मों से चूर है हम खिलौने हैं तेरे तो हम में दिल क्यूँ रख दिया दिल बनाया भी तो दर्द-ए-मुस्तक़िल क्यूँ रख दिया क्यूँ बनाया ये तमन्ना का जहाँ लूट लीं ख़ुशियाँ तो अब ये आरज़ू भी लूट ले ये मोहब्बत की तलब , ये जुस्तजू भी लूट ले कर दिया बर्बाद दिल को तो इसे अब तोड़ दे कुछ नहीं इसमें तो अब क़िस्मत का शीशा फोड़ दे दिल , मोहब्बत , ज़िन्दगी , सब रायगाँ पारा पारा – टुकड़ा टुकड़ा , दर्द-ए-मुस्तक़िल – हमेशा होने वाला दर्द , रायगाँ – बेकार 

हमारी काविशों की एक दिन यूँ आबरू होगी

हमारी काविशों की एक दिन यूँ आबरू होगी मोहब्बत सर झुकाएगी तमन्ना बावज़ू होगी है इतनी बेकराँ , फैली हुई है सारे आलम में जहाँ हम तुम नहीं होंगे वहाँ भी आरज़ू होगी फ़ना कर के हमें चेहरा छुपाती फिर रही है वो हम उसका हाल पूछेंगे जो हसरत रू ब रू होगी किसी सूरत हमारी सल्तनत होगी ज़माने में यहाँ जब हम नहीं होंगे , हमारी जुस्तजू होगी ये ज़हन-ए-मुंतशिर , ये ज़ख़्मी दिल और वस्ल का वादा ज़बाँ मफ़्लूज है , क्या ख़ाक उनसे गुफ़्तगू होगी ? मिले तो हम मिलेंगे अब  मोहब्बत के जनाज़े पर अना की धज्जियों से दिल की हर हसरत रफ़ू होगी तसव्वर भी , तफ़क्कुर भी , अना भी , आज़माइश भी वहाँ कोई न पहुँचेगा जहाँ “ मुमताज़ ” तू होगी काविश – खोज , बावज़ू – वज़ू की हुई , बेकराँ – अथाह , रू ब रू – आमने सामने , जुस्तजू – तलाश , ज़हन-ए-मुंतशिर – बिखरा हुआ दिमाग़ , वस्ल – मिलन , मफ़्लूज – लकवा ग्रस्त , गुफ़्तगू – बात चीत , तसव्वर – कल्पना , तफ़क्कुर – विचार शीलता , अना – अहं

बुज़ुर्गों की बुज़ुर्गी आजकल घबराई है साहब - एक बहुत पुरानी ग़ज़ल

बुज़ुर्गों की बुज़ुर्गी आजकल घबराई है साहब जवाँ नेताओं पर कुछ यूँ जवानी आई है साहब ठिकाना ही नहीं कोई कि किस पर मेहरबाँ होगी सियासत की ये महबूबा बड़ी हरजाई है साहब खिलाड़ी बेच डाले , टीमें बेचीं , बेचे सौ सपने सभी ने अपनों को ये रेवड़ी बँटवाई है साहब किसी के लब पे गाली है किसी के हाथ में तरकश सभी की अपनी डफ़्ली , अपनी ही शहनाई है साहब हैं संसद में सभी इक दूसरे से बढ़ के बाज़ीगर कोई रहज़न , कोई क़ातिल , कोई बलवाई है साहब कोई अपना अजेंडा भी रहे ये क्या ज़रूरी है यहाँ तो सद्र-ए-आला सबका बाबा माई है साहब हमारे मुंह पे हम जैसी तो उनके मुंह पे उन जैसी हो सर्कोज़ी कि ओबामा , हर इक हरजाई है साहब विकी लीक्स पर ये एक्शन , ये असांजे की गिरफ़्तारी दबी है पूंछ तो नागन ये अब बल खाई है साहब हैं कितने मेहरबाँ “ मुमताज़ ” सब क़स्साब-ए-क़ातिल पर हमारा इंडिया भी कैसा हातिमताई है साहब 

दुपट्टा मेरा

आज मैं ने टी वी पर देखा , एक नीम उरियाँ नाज़नीन लहरा लहरा कर गा रही थी , " इन्हीं लोगों ने लई लीन्हा दुपट्टा मेरा". ये सुन कर मेरे ज़हन में चाँद सवालात ने शोर मचाया। बराए मेहरबानी किसी के पास इन सवालों के जवाब हों तो मुझे ज़रूर बताएं ..... 1. इस लड़की को शॉर्ट्स के साथ दुपट्टा पहनने की ज़रुरत क्यूँ पड़ी , क्या ये कोई नया फैशन है ???? मुझे लगता है कि शायद इसी लिए सिपहिया ने उस का दुपट्टा छीन लिया 2. जब बाज़ार में सिले सिलाए कपडे इफरात में मिल रहे हैं तो इस को दुपट्टे से बदन ढकने की ज़रुरत क्यूँ पड़ी , दुपट्टा तो दुपट्टा है , सिपहिया न छीनता तो हवा में भी तो उड़ सकता था। 3. दुपट्टे के छिन जाने का ऐलान करने के लिए नाचना ज़रूरी था क्या ???? 4. वो लडकियाँ जो उस के साथ नाच रही थीं , उन का दुपट्टा भी छिन गया था क्या , या सिर्फ इस लड़की को तसल्ली देने के लिए वो इसके साथ नाच रही थीं ??? 5. ये लड़की हमें बेवक़ूफ़ बना रही है क्या , क्यूँ कि जिन बजजवा , रंगरेजवा और सिपहिया ने उस का दुपट्टा छीना , उन्हें ही गवाह क्यूँ बनाना चाहती है ,  भला वो अपने गुनाह का इक़रार क्यूँ करेंगे ??? अरे कोई त

रंग कहीं सौ सौ बिखरे हैं और कहीं वीराने हैं

रंग कहीं सौ सौ बिखरे हैं और कहीं वीराने हैं चेहरे की इक एक शिकन में पिनहाँ सौ अफसाने हैं अब ये सफ़र की आख़िरी मंज़िल कितनी कुशादा लगती है अब भी ठहरना हम को गराँ है हम कैसे दीवाने हैं ज़ख़्म गिने , मरहम रक्खे , ये फ़ुरसत किसको है यारो ज़ीस्त के उलझे उलझे धागे हमको अभी सुलझाने हैं इश्क़ में कितने पेच-ओ-ख़म हैं , ग़म में कितनी तारीकी फिर भी कशिश है इनमें कैसी , ये अनमोल ख़ज़ाने हैं ज़िन्दगी भी है एक अज़ीयत फिर भी कितनी प्यारी है जीने के इस दुनिया को अंदाज़ अभी सिखलाने हैं वक़्त-ए-सफ़र है , हसरत से तकते हैं दर-ओ-दीवार को हम नक़्श इन्हीं पर माज़ी के मुमताज़ कई अफ़साने हैं पिनहाँ – छुपे हुए , कुशादा – विशाल , ज़ीस्त – ज़िन्दगी , पेच-ओ-ख़म – घुमाव और मोड़ , तारीकी – अँधेरा , कशिश – आकर्षण , अज़ीयत – यातना , माज़ी – अतीत 

ग़म के ख़ज़ाने, दर्द की दौलत बाक़ी है

ग़म के ख़ज़ाने , दर्द की दौलत बाक़ी है अब इस दिल में सिर्फ़ मोहब्बत बाक़ी है वक़्त के हाथों जिस को लुटा डाला था कभी अब भी दिल में घर की हाजत बाक़ी है अब जो दुआ को हाथ उठाएँ , क्या माँगें जीने की अब कौन सी सूरत बाक़ी है रस्ता किसका देख रही हैं अब आँखें आने को अब कौन सी आफ़त बाक़ी है रात की गहरी तारीकी है , और हम हैं आँखों में बस नींद की चाहत बाक़ी है टूटे फूटे दिल के कुछ टुकड़े हैं बस दामन में बस एक ये दौलत बाक़ी है चंद लकीरें चेहरे पर , कुछ हाथों में ले दे कर बस इतनी क़िस्मत बाक़ी है सीने में साँसें हैं दिल में धड़कन भी जिस्म में थोड़ी थोड़ी हरारत बाक़ी है अब हमको “ मुमताज़ ” किसी से क्या शिकवा ये क्या कम है सूत-ओ-समाअत बाक़ी है हाजत – ज़रूरत , तारीकी – अँधेरा , हरारत – गर्मी , शिकवा – शिकायत , सूत-ओ-समाअत – बोलने और सुनने की क्षमता