गीत - ऐ ख़ुदा-ए-दो जहाँ
ऐ
ख़ुदा-ए-दो जहाँ
है
ये कैसा इम्तेहाँ
क्यूँ
मुझे दे दी तमन्ना बेकराँ
ये
तेरी जादूगरी
लूट
कर ख़ुशियाँ मेरी
मुँह
छुपा कर खो गया है तू कहाँ
क्यूँ
मेरे दिल में जगाए आरज़ू के सिलसिले
क्यूँ
मेरी आँखों को बख़्शे ख़्वाब के ये क़ाफ़िले
क्यूँ
मेरे दिल के जहाँ को पारा पारा कर दिया
और
आँखों में मेरी फिर क्यूँ अँधेरा कर दिया
लूट
कर वो आरज़ू का कारवाँ
खेलता
है तू दिलों से तेरा ये दस्तूर है
लेकिन
ऐ मालिक ये दिल मेरा ग़मों से चूर है
हम
खिलौने हैं तेरे तो हम में दिल क्यूँ रख दिया
दिल
बनाया भी तो दर्द-ए-मुस्तक़िल क्यूँ रख दिया
क्यूँ
बनाया ये तमन्ना का जहाँ
लूट
लीं ख़ुशियाँ तो अब ये आरज़ू भी लूट ले
ये
मोहब्बत की तलब, ये जुस्तजू भी लूट ले
कर
दिया बर्बाद दिल को तो इसे अब तोड़ दे
कुछ
नहीं इसमें तो अब क़िस्मत का शीशा फोड़ दे
दिल, मोहब्बत, ज़िन्दगी, सब रायगाँ
पारा
पारा – टुकड़ा टुकड़ा, दर्द-ए-मुस्तक़िल – हमेशा होने वाला दर्द, रायगाँ – बेकार
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