शौक़ ये आवारगी का, ज़िन्दगी की जुस्तजू
शौक़ ये आवारगी का , ज़िन्दगी की जुस्तजू दश्त-ओ-सहरा में लिए फिरती है मुझको आरज़ू कोशिशें , हिम्मत , इरादे , वक़्त के हाथों मिटे इस जेहाद-ए-ज़िन्दगी में कैसे कैसे जंगजू मरते मरते फिर से ज़िन्दा हो उठीं सौ ख़्वाहिशें दिल की इस बंजर ज़मीं पर हसरतों का ये नमू जब बढ़ी राहत क़दमबोसी को , ठोकर मार दी हमने रक्खी है हमेशा वहशतों की आबरू गर्मी-ए-एहसास से ये रूह तक तपने लगी सहरा-ए-दिल में चली क्या क्या तमन्नाओं की लू इश्क़ की पाकीज़गी महशर में काम आ जाएगी कर रहे होंगे फ़रिश्ते मेरे अश्कों से वज़ू उसका चेहरा भी ख़यालों में नज़र आता नहीं धुंध सी छाई है कैसी आज दिल के चार सू जान कर हम हार बैठे इश्क़ की बाज़ी कि यूँ हसरतें “ मुमताज़ ” हैं अब दिल हुआ है सुर्ख़रू जेहाद – संघर्ष , जंगजू – योद्धा , नमू – फलने फूलने की क्षमता , क़दमबोसी – पाँव चूमना , पाकीज़गी – पवित्रता , महशर – दुनिया का आख़िरी दिन , जब अल्लाह इंसाफ़ करेगा , वज़ू – इबादत के लिए हाथ पाँव धोना , सुर्ख़रू – विजयी