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बेज़ारी की बर्फ़ पिघलना मुश्किल है

बेज़ारी   की   बर्फ़   पिघलना   मुश्किल   है   ख़्वाबों   से   दिल   आज   बहलना   मुश्किल   है तुन्द हवाओं   से   लर्ज़ाँ   है   शम्म-ए-यक़ीं   इस   आंधी   में   दीप   ये   जलना   मुश्किल   है हर   जानिब   है   आग , सफ़र   दुशवार   है   अब जलती   है   ये   राह , कि चलना   मुश्किल   है आग   की   बारिश , ख़ौफ़ के   दरिया   का   सैलाब इस   मौसम   में   घर   से   निकलना   मुश्किल   है गर्म   है   क़त्ल   ओ   ग़ारत का   बाज़ार   अभी ये   जाँ   का   जंजाल   तो   टलना   मुश्किल   है उल्फ़त   की   अब   छाँव   तलाश   करो   यारो नफ़रत   का   ख़ुर्शीद   तो   ढलना   मुश्किल   है ताक़त   जिस   की  ...

नफ़रतों का ये नगर मिस्मार होना चाहिए

नफ़रतों का ये नगर मिस्मार होना चाहिए अब मोहब्बत का खुला इज़हार होना चाहिए एकता की कश्तियाँ मज़बूत कर लो साथियो अब त ' अस्सुब का ये दरिया पार होना चाहिए टूटे मुरझाए दिलों को प्यार से सींचो , कि अब रूह का रेग ए रवाँ गुलज़ार होना चाहिए मुल्क देता है सदा , ऐ मेरे हमवतनो , उठो सो लिए काफ़ी , बस अब बेदार होना चाहिए खौफ़ का सूरज ढले , सब के दिलों में हो यक़ीं है नहीं , लेकिन ये अब ऐ यार , होना चाहिए कब तलक "मुमताज़" बेजा हरकतों का इत्तेबाअ हर सदा पर हाँ ? कभी इनकार होना चाहिए nafratoN ka ye nagar mismaar hona chaaiye ab mohabbat ka khula izhaar hona chaahiye zulmaton ka ye safar hamwaar hona chaahiye "aadmi ko aadmi se pyar hona chaahiye" ekta ki kashtiyaaN mazboot kar lo dosto ab ta'assub ka ye dariya paar hona chaahiye toote murjhaae diloN ko pyaar se seencho, ki ab rooh ka reg e rawaaN gulzaar hona chaahiye mulk deta hai sadaa, ae mere hamwatno, utho so liye kaafi, bas ab bedaar hona chaahiye khauf...

ख़ंजर हैं तअस्सुब के, और खून की होली है

ख़ंजर हैं   तअस्सुब   के , और   खून की   होली   है हम   ने   ये   विरासत   अब   औलाद   को   सौंपी   है तारीक   बयाबाँ   में   ये   कैसी   तजल्ली   है ये   दिल   की   सियाही   में   क्या   शय   है   जो   जलती   है जो   हारे   वो   पा   जाए , ये   इश्क़   की   बाज़ी   है जब   ख़ुद   को   गंवाया   है , तब   जंग   ये   जीती   है है   दूर   अभी   साहिल , तय   हो   तो   सफ़र   कैसे रूठा   हुआ   मांझी   है , टूटी   हुई   कश्ती   है बेताब   जुनूँ   का   ये   अदना   सा   करिश्मा   है देहलीज़   पे   हसरत   की   तक़दीर   सवाली   है देखा   जो   ज़रा   मुड़   के , पथरा   गई   बीनाई माज़ी ...

दिल पे चलता ही नहीं अब कोई बस

दिल पे चलता ही नहीं अब कोई बस आरज़ू होती नहीं है   टस   से   मस दौर - ए - हाज़िर का ये सरमाया है बस खुदसरी , मतलब परस्ती और हवस ये गुज़र जाता है ठोकर मार कर कब किसी का वक़्त पर चलता है बस आशियाँ की आंच पहुंची है यहाँ तीलियाँ तपती हैं , जलता है क़फ़स डूब   जाए   नाउम्मीदी   का   जहाँ आज ऐ बारान - ए - रहमत यूँ बरस सूखता जाता है दिल का आबशार ज़िन्दगी में अब कहाँ बाक़ी वो रस मैं करूँ फ़रियाद ? नामुमकिन , तो क्यूँ " कोई खाए मेरी हालत पर तरस" है यक़ीं ख़ुद पर तो फिर "मुमताज़" जी क्यूँ भला दिल में है इतना पेश - ओ - पस dil pe chalta hi nahiN ab koi bas aarzoo hoti nahiN hai tas se mas daur e haazir ka ye sarmaaya hai bas khudsari, matlab parasti aur hawas ye guzar jaata hai thokar maar kar kab kisi ka waqt par chalta hai bas aashiyaaN ki aanch pahonchi hai yahaN teeliyaaN tapti haiN, jalta hai qafas doob jaae naaummeedi ka jahan aaj ae baaraan e rahmat yuN baras sookhta jaata hai dil ...

ज़हन-ए-बेहिस को जगा दे वो तराना चाहिए

ज़हन-ए-बेहिस को जगा दे वो तराना चाहिए जीत का इक ख़्वाब आँखों में सजाना चाहिए दिल के सोने को बनाना है जो कुंदन , तो इसे आतिश-ए-जहद-ए-मुसलसल में तपाना चाहिए रंज हो या उल्फ़तें हों , हसरतें हों या जुनूँ कोई भी जज़्बा हो लेकिन वालेहाना चाहिए पेट की आतिश में जल जाता है हर ग़म का निशाँ ज़िन्दगी कहती है , मुझ को आब-ओ-दाना चाहिए दिल तही , आँखें तही , दामन तही , लेकिन मियाँ आरज़ूओं को तो क़ारूँ का ख़ज़ाना चाहिए अक़्ल कहती है , क़नाअत कर लूँ अपने हाल पर और बज़िद है दिल , उसे सारा ज़माना चाहिए रफ़्ता रफ़्ता हर ख़ुशी “मुमताज़” रुख़सत हो गई अब तो जीने के लिए कोई बहाना चाहिए आतिश-ए-जहद-ए-मुसलसल - लगातार जद्द-ओ-जहद की आग, आब-ओ-दाना - दाना -पानी, क़नाअत - संतोष, बज़िद - ज़िद पर आमादा, रफ़्ता रफ़्ता - धीरे-धीरे, रुख़सत - विदा zahn-e-behis ko jagaa de wo taraana chaahiye jeet ka ik khwaab aankhoN meN sajaana chaahiye dil ke sone ko banaana hai jo kundan, to ise aatish-e-jahd-e-musalsal meN tapaana chaahiye ranj ho ya ulfateN hoN, hasrateN hoN ya junooN koi bhi jazba h...

ज़ख़्म महरूमी का भरने से रहा

ज़ख़्म   महरूमी   का   भरने   से   रहा " कर्ब   का   सूरज   बिखरने   से   रहा" ज़ीस्त   ही   गुज़रे   तो   अब   गुज़रे   मियाँ वो   हसीं   पल   तो   गुज़रने   से   रहा खेलते   आए   हैं   हम   भी   जान   पर मुश्किलों   से   दिल   तो   डरने   से   रहा फ़ैसला   हम   ही   कोई   कर   लें   चलो वो   तो   ये   एहसान   करने   से   रहा पल   ख़ुशी   के   पर   लगा   कर   उड़   गए वक़्त   ही   ठहरा , ठहरने   से   रहा है   ग़नीमत   लम्हा   भर   की   भी   ख़ुशी अब   मुक़द्दर   तो   सँवरने   से   रहा जोश   की   गर्मी   से   पिघलेगा   क़फ़स अब   जुनूँ   घुट   घुट   के   मरने   से ...

हम पर जो हैं अज़ीज़ों के एहसान मुख़्तलिफ़

हम पर जो हैं अज़ीज़ों के एहसान मुख़्तलिफ़ लगते रहे हैं हम पे भी बोहतान मुख़्तलिफ़ हर एक रहनुमा का है ऐलान मुख़्तलिफ़ हैं मसलेहत के थाल में ग़लतान मुख़्तलिफ़ बिखरे हुए हैं ज़ीस्त के हैजान मुख़्तलिफ़ टुकड़ों में दिल के रहते हैं अरमान मुख़्तलिफ़ होगा क़दम क़दम पे इरादों का इम्तेहाँ इस रास्ते में आएँगे बोहरान मुख़्तलिफ़ खुलते रहे हयात के हर एक मोड़ पर तक़दीर की किताब के उनवान मुख़्तलिफ़ इस्लाम आज कितने ही ख़ानों में बँट गया मसलक जुदा जुदा हुए , ईमान मुख़्तलिफ़ ये और बात , हारा नहीं हम ने हौसला गुजरे हमारी राह से तूफ़ान मुख़्तलिफ़ धोका छलावा ज़ख़्मी अना और शिकस्ता दिल “मुमताज़” हैं ख़ुलूस के नुक़सान मुख़्तलिफ़ मुख़्तलिफ़ – अलग अलग , बोहतान – झूठा इल्ज़ाम , रहनुमा – लीडर , मसलेहत – पॉलिसी , ग़लतान – लुढ़कने वाला , ज़ीस्त – ज़िन्दगी , हैजान – जोश , बोहरान – अड़चन , हयात – ज़िन्दगी , उनवान – शीर्षक , मसलक – रास्ता , तरीका , अना – अहं , ख़ुलूस – सच्चाई ham par jo hain azizoN ke ehsaan mukhtalif lagte rahe haiN ham pe bhi bohtaan mukhtalif har ek rahnuma ka hai ailaan mukh...