मेरा सरमाया ही सारा ले गया मेरा जुनूँ
क्या मोहब्बत , क्या रफ़ाक़त , क्या ख़ुशी , कैसा सुकूँ मेरा सरमाया ही सारा ले गया मेरा जुनूँ कितने ही रंगीन साए देखे थे कल ख़्वाब में ख़्वाब की ताबीर क्या दूं , कौन सा पैकर लिखूं खाए जाता है मुझे मजबूरियों का ये सफ़र कब तलक ख़ुद को समेटूं , दर ब दर कब तक फिरूँ ये तेरा बेशक्ल रुख़ , ऐ मेरी बद्ज़न ज़िन्दगी तेरी इस बेचेहरगी को कौन सा अब रंग दूं लम्हा दो लम्हा की राहत और सदियों की चुभन ज़िन्दगी की तल्खियों में ये तमन्ना का फुसूँ तोड़ देता है मुसाफ़िर को सफ़र का इख्तेताम थक चुकीं बेकल उम्मीदें , आरज़ू...