हवा अब रुख़ बदलती है
गुलों
ने रंग बदले हैं बहार अब हाथ मलती है
संभल
जाओ चमन वालों, हवा अब रुख़ बदलती है
जिगर
का ख़ून होता है तो इक हसरत निकलती है
तेरी
ये मुंतज़र साअत बड़ी मुश्किल से टलती है
तख़य्युल
की जबीं पर जब तमन्ना रक़्स करती है
तसव्वर
की बलन्दी को नई परवाज़ मिलती है
वो
जिसकी रौशनी से दिल का हर ज़र्रा सितारा था
जिगर
में तेरी उल्फ़त की वो आतिश अब भी जलती है
सुख़न
की वादियों में फिर तेरा पैकर भटकता है
सुनी
है फिर तेरी आहट, तबीयत फिर संभलती है
तसव्वर
रोज़ दिल की उस गली की सैर करता है
कि
यादों के नशेमन की ये खिड़की रोज़ खुलती है
हज़ारों
ख़्वाब जाग उठते हैं इन वीरान आँखों में
तेरी
बाहों में जानाँ दिल की हर ख़्वाहिश पिघलती है
जला
कर ख़ाक करती जा रही है हर घड़ी मुझ को
ये
कैसी आग सी “मुमताज़” इस सीने में जलती है
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