लुट रही है वक़्त के हाथों मता ए ज़िन्दगी

लुट रही है वक़्त के हाथों मता ए ज़िन्दगी
लम्हा लम्हा कटती जाती है सज़ा ए ज़िन्दगी

है अज़ीअत नाक ये, फिर भी है कितनी दिलरुबा
लोग ख़ुद को बेच देते हैं बराए ज़िन्दगी

ख़त्म होती ही नहीं मुद्दत हयात ए ख़ाम की
कौन देता जाता है मुझ को दुआ ए ज़िन्दगी

हादसा दर हादसा ये नाउम्मीदी का सफ़र
किस क़दर मुझ पर मुसलसल ज़ुल्म ढाए ज़िन्दगी

मेहरबाँ, नामेहरबाँ, बद्ज़न, कभी गुस्ताख़ भी
दिल को अब भाती नहीं कोई अदा ए ज़िन्दगी

कैसी कोशिश, क्या इरादे, है मेरी औक़ात क्या
करना तो होगा वही, जो है रज़ा ए ज़िन्दगी

हर नफ़स बेचैन, हर धड़कन अज़ाबों का सफ़र
लम्हा लम्हा, दम ब दम मुझ को मिटाए ज़िन्दगी

नाम से रिश्तों के अब "मुमताज़" घबराता है दिल
क़र्ज़ रिश्तों का भला कब तक चुकाए ज़िन्दगी   


मता ए ज़िन्दगी-ज़िन्दगी की पूँजी, अज़ीअत नाक-तकलीफदेह, बराए ज़िन्दगी-ज़िन्दगी के लिए, हयात ए ख़ाम- बेकार ज़िन्दगी, मुसलसल-लगातार, रज़ा ए ज़िन्दगी-ज़िन्दगी की मर्ज़ी, नफ़स-सांस, अज़ाबों का सफ़र-यातनाओं का सफ़र

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते