ग़रीबी और बेकारी , जो पहले थी , सो अब भी है वही जीने की लाचारी , जो पहले थी , सो अब भी है भरी नोटों से अलमारी जो पहले थी , सो अब भी है वही लीडर की बटमारी , जो पहले थी , सो अब भी है कभी सुरसुर , कभी खुरखुर , कभी फुर्री , कभी सीटी वो खर्राटों की बीमारी जो पहले थी सो अब भी है कभी भड़भड़ , कभी तड़तड़ , कभी टुइयाँ , कभी ठुस्की वो बदहज़्मी की बमबारी जो पहले थी सो अब भी है वही ऐश और वही इशरत , वही स्विस बैंक के खाते वो कुछ लोगों की मक्कारी जो पहले थी सो अब भी है है लक़दक़ पैरहन , लेकिन है दिल कालिख से भी काला वही उनकी सियहकारी , जो पहले थी , सो अब भी है वही हैं पार्टियाँ दो चार बस ले दे के चोरों की वही वोटर की लाचारी , जो पहले थी , सो अब भी है वही कुर्सी की खेंचातान , वो तादाद की बाज़ी वो मोहरों की ख़रीदारी जो पहले थी सो अब भी है तअस्सुब मिट चुका , अदना ओ आला सब बराबर हैं मगर परजा की त्योहारी जो पहले थी , सो अब भी है कभी जम्हूरियत का इक सुनहरा ख़्वाब देखा था मगर ताबीर तो भारी जो पहले थी सो अब भी है निज़ाम-ए-स्याह में चौपट...