तरही ग़ज़ल - हम झेलने अज़ीज़ों का हर वार आ गए
हम झेलने अज़ीज़ों का हर वार आ गए सीना ब सीना बर सर ए पैकार आ गए ऐ ज़िन्दगी , ख़ुदारा हमें अब मुआफ़ कर हम तो तेरे सवालों से बेज़ार आ गए तमसील दुनिया देती थी जिन के ख़ुलूस की उन को भी दुनियादारी के अतवार आ गए यारो , सितम ज़रीफी तो क़िस्मत की देखिये कश्ती गई , तो हाथों में पतवार आ गए घबरा गए हैं अक्स की बदसूरती से अब हम आईनों के शहर में बेकार आ गए आवारगी का लुत्फ़ भी अब तो हुआ तमाम अब तो सफ़र में रास्ते हमवार आ गए इतने हक़ीक़तों से गुरेज़ाँ हुए कि अब " हम ख्व़ाब बेचने सर ए बाज़ार आ गए" अब मुफलिसी की तो कोई क़ीमत न थी , कि हम " मुमताज़" आज बेच के दस्तार आ गए ہم جھیلنے عزیزوں کا ہر وار آ گئے سینہ بہ سینہ بر سر پیکار آ گئے اے زندگی , خدارا ہمیں اب معاف کر ہم تو تیرے سوالوں سے بیزار آ گئے تمثیل دنیا ...