तरही ग़ज़ल - हम झेलने अज़ीज़ों का हर वार आ गए
हम झेलने
अज़ीज़ों का हर वार आ गए
सीना ब सीना बर
सर ए पैकार आ गए
ऐ ज़िन्दगी, ख़ुदारा हमें अब
मुआफ़ कर
हम तो तेरे
सवालों से बेज़ार आ गए
तमसील दुनिया
देती थी जिन के ख़ुलूस की
उन को भी
दुनियादारी के अतवार आ गए
यारो, सितम ज़रीफी तो
क़िस्मत की देखिये
कश्ती गई, तो हाथों में
पतवार आ गए
घबरा गए हैं अक्स
की बदसूरती से अब
हम आईनों के शहर
में बेकार आ गए
आवारगी का लुत्फ़
भी अब तो हुआ तमाम
अब तो सफ़र में
रास्ते हमवार आ गए
इतने हक़ीक़तों
से गुरेज़ाँ हुए कि अब
"हम ख्व़ाब बेचने
सर ए बाज़ार आ गए"
अब मुफलिसी की तो
कोई क़ीमत न थी, कि हम
"मुमताज़" आज
बेच के दस्तार आ गए
ہم
جھیلنے عزیزوں کا ہر وار آ گئے
سینہ
بہ سینہ بر سر پیکار آ گئے
اے
زندگی , خدارا ہمیں اب معاف کر
ہم
تو تیرے سوالوں سے بیزار آ گئے
تمثیل
دنیا دیتی تھی جن کے خلوص کی
ان
کو بھی دنیاداری کے اطوار آ گئے
یارو
ستم ظریفی تو قسمت کی دیکھئے
کشتی
گئی , تو ہاتھوں میں پتوار آ گئے
گھبرا
گئے ہیں عکس کی بدصورتی سے اب
ہم
آئینوں کے شہر میں بیکار آ گئے
آوارگی
کا لطف بھی اب تو ہوا تمام
اب
تو سفر میں راستے ہموار آ گئے
اتنے
حقیقتوں سے گریزاں ہوئے کہ اب
"ہم خواب بیچنے سر بازار آ گئے "
اب
مفلسی کی تو کوئی قیمت نہ تھی , کہ
ہم
"ممتاز " آج بیچ کے دستار آ گئے
सीना ब सीना बर
सर ए पैकार – आमने सामने जंग करने के लिए, तमसील – मिसाल, ख़ुलूस – सच्ची मोहब्बत, अतवार – तौर तरीक़े, सितम ज़रीफी – मज़ाक़ की आड़ में ज़ुल्म करना, दस्तार – पगड़ी
Comments
Post a Comment