रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है
रोज़ एहसास ये अंगारों में ढलता क्यूँ है
ये अँधेरा शब ए तन्हाई का जलता क्यूँ है
अश्क शबनम के यही करते हैं हर रोज़ सवाल
गोद में शब की अँधेरा ये पिघलता क्यूँ है
कोख में क़त्ल किये जाने की क्यूँ दी है सज़ा
बाग़बाँ अपनी ही कलियों को कुचलता क्यूँ है
मस्लेहत क़ैद रखेगी मुझे आख़िर कब तक
ये जुनूँ रूप बदल कर मुझे छलता क्यूँ है
ग़म के तेज़ाब से एहसास की सींची हैं जड़ें
फिर तमन्ना का शजर आज भी फलता क्यूँ है
क़ैद कर लेती है क्यूँ नूर को तारीकी-ए-शब
बूढ़े सूरज को उफ़क़ रोज़ निगलता क्यूँ है
ज़ेर-ओ-बम गर्दिश-ए-हालात के क्या हैं आख़िर
आसमाँ रोज़ नए रंग बदलता क्यूँ है
क़तरे सीमाब के "मुमताज़" न हाथ आएँगे
दिल अबस नारसा हसरत प् मचलता क्यूँ है
शजर – पेड़, तारीकी-ए-शब – रात
का अँधेरा, उफ़क़ – क्षितिज, ज़ेर-ओ-बम – ऊँच नीच, सीमाब – पारा, अबस – बेकार, नारसा – जिस की पहुँच न हो
roz ehsaas ye
angaaroN meN dhalta kyuN hai
ye andhera shab e
tanhaai ka jalta kyuN hai
ashk shabnam ke yahi
karte haiN har roz sawaal
god meN shab ki
andhera ye pighalta kyuN hai
kokh meN qatl kiye
jaane ki kyuN di hai sazaa
baghbaaN apni hi
kaliyoN ko kuchalta kyuN hai
maslehat qaid rakhegi
mujhe aakhir kab tak
ye junooN roop badal
kar mujhe chhalta kyuN hai
gham ke tezaab se
ehsaas ki seenchi haiN jadeN
phir tamanna ka
shajar aaj bhi phalta kyuN hai
qaid kar leti hai
kyuN noor ko tareeki e shab
boodhe sooraj ko ufaq
roz nigalta kyuN hai
zer o bam gardish e
haalaat ke kya haiN aakhir
aasmaaN roz nae rang
badalta kyuN hai
qatre seemaab ke
"Mumtaz" na haath aaenge
dil abas naarasaa
hasrat pa machalta kyuN hai
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