उम्मीद का मेरे दिल पर हिसार है कि नहीं
उम्मीद का मेरे दिल पर हिसार है कि नहीं
नदी भी कोई सराबों के पार है कि नहीं
वो कशमकश में है, मैं भी इसी ख़याल में हूँ
सफ़र के तूल में राह ए फ़रार है कि नहीं
मैं जान देने को दे दूँ, प ये तो वाज़ेह कर
तेरे निसारों में मेरा शुमार है कि नहीं
मुझे तो ज़ख़्मी अना का सुरूर है कब से
शराब-ए-ज़ात का तुझ को ख़ुमार है कि नहीं
जो तुझ को रहना है दिल में तो सोच ले पहले
ज़मीन ए जंग तुझे साज़गार है कि नहीं
मैं ढूँढती हूँ ग़ुरूर-ए-अना की आँखों में
मेरे क़लम में अभी तक वो धार है कि नहीं
यही सवाल सताता है दिल को हर लम्हा
मेरी तलाश में अब वो बहार है कि नहीं
चलेगा सिलसिला कब तक ये आज़माइश का
मेरी वफा का तुझे ऐतबार है कि नहीं
हम आ तो पहुँचे मगर सोचते हैं अब "मुमताज़"
जहाँ पहुँचना था ये वो दयार है कि नहीं
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