कोई पूछे जहाँ में क्या देखा


कोई पूछे जहाँ में क्या देखा
देखा जो कुछ वो ख़्वाब सा देखा

जब भी निकले तलाश में उस की
दूर तक कोई नक़्श ए पा देखा

अपने अंदर तलाश की जब भी
इक जहाँ दिल में भी छुपा देखा

हो के मजबूर दिल के हाथों से
उस को सब की नज़र बचा देखा

कब तलक होगी आज़माइश ये
अब तो हर एक ज़ुल्म ढा देखा

अब तो नासेह भी ये नहीं कहते
झूठ का हश्र बस बुरा देखा

तीरगी तो किसी तरह न मिटी
हम ने दिल का जहाँ जला देखा

खाक का एक बुत हूँ मैं "मुमताज़"
तू ने ऐ यार मुझ में क्या देखा

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