मैं हूँ और एक सूना आँगन है
मैं
हूँ और एक सूना आँगन है
अपनी
सब रौनक़ों से अनबन है
बेहिसी
का शदीद साया है
दिल
में अब दर्द है, न धड़कन है
अब्र
से अबके आग बरसी है
अबके
आया अजीब सावन है
अब
न टपके लहू न चोट लगे
दिल
है सीने में अब कि आहन है
आबलापाई
अब मुक़द्दर है
सहरागर्दानी
जो मेरा फ़न है
तू
है हर सू मगर नज़र से परे
दरमियाँ
जिस्म की ये चिलमन है
तेरी
रहमत से क्या गिला यारब
चाक
“मुमताज़” का ही दामन है
बेहिसी
–
भावशून्यता, शदीद – instance, अब्र – बादल, आहन – लोहा, आबलापाई – पाँव में छाले
पड़ना, सहरागर्दानी – रेगिस्तान में भटकना, दरमियाँ – बीच में, चिलमन – पारभासी पर्दा, चाक – फटा हुआ
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