ख़ून में हम ने भरा जोश जो दरियाओं का
ख़ून
में हम ने भरा जोश जो दरियाओं का
हिम्मतें
लेती हैं बोसा मेरे इन पाओं का
जिनको
ठुकरा के गुज़रती रही क़िस्मत अक्सर
पूछती
है वो पता अब उन्हीं आशाओं का
दिलरुबा
लगते हैं ये मेरे उरूसी छाले
रंग
निखरा है अजब आज मेरे घाओं का
है
सफ़र लंबा अभी और तलातुम है शदीद
हश्र
क्या जाने हो क्या टूटी हुई नाओं का
हौसला
मुझको ले आया था तबाही की तरफ़
दोष
क्या इसमें मेरे हाथ की रेखाओं का
अब
खटकने लगे काँटों की तरह वो रिश्ते
फ़ासला
शहरों से कितना है बढ़ा गाओं का
राहतों
से ये दिल उकताने लगा है अब तो
दर्द
में भी है नशा सैकड़ों सहबाओं का
वक़्त
ऐसा भी कभी आया है मुमताज़ कि फिर
धूप
ने माना है एहसान घनी छाओं का
बोसा
–
चुंबन, दिलरुबा - दिल चुराने वाले,
उरूसी – लाल रंग के, तलातुम – लहरों के थपेड़े, शदीद – तेज़, सहबाओं का – शराबों का
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