नज़र से रूह तक गया

नज़र से रूह तक गया, वो नफ़्स में उतर गया
वो धड़कनों की लय में गुंथ के चारसू बिखर गया

उदासियों की दीमकों ने खा लिया वजूद को
मेरी किताब-ए-ज़ीस्त का वरक़ वरक़ बिखर गया

जो कर रहा था गर्दिशें रगों में ख़ून से सिवा
जो दिन ढला तो धीरे से वो ज्वार भी उतर गया

ख़ुदा के सामने उठाए हाथ फिर खड़े हैं हम
मगर वो बंदगी कहाँ, दुआओं से असर गया

कहाँ वो तर्ज़-ए-गुफ़्तगू, ख़ुदी की शान क्या हुई
अना का नाज़ क्या हुआ, वो बाँकपन किधर गया

ये हाथ काँपते हैं क्यूँ जो हाथ से कमाँ गिरी
सितमज़रीफ़ आज तू ये किस क़हर से डर गया

ये ज़ख़्म ज़ख़्म ज़िन्दगी, ये रूह थी थकी थकी
ज़रा सी वो नज़र उठी, हर एक ज़ख़्म भर गया

ये इश्क़ का जुनूँ क़दम क़दम पे रक़्स कर चला
वो सरफ़रोश दिल पे ज़िन्दगी निसार कर गया

ये रंज-ओ-आह, ये फ़ुग़ाँ, गली गली ये शोर उठा
वो दिल की सल्तनत का बादशाह आज मर गया

ये झोंके नम हवाओं के चुभे जो आ के जिस्म में
तमाम तन लरज़ उठा, हर एक ज़ख़्म उभर गया

झड़ी लगी थी रात भर नगर में भी, नज़र में भी
तो धुल के बारिशों में हर तरफ़ समां निखर गया

जो दर ब दर थी ज़िन्दगी, है आज नाज़ाँ ख़ुद पे भी
नज़र जो बदली वक़्त की ज़माना भी ठहर गया


नफ़्स वजूद, चारसू चारों तरफ़, किताब-ए-ज़ीस्त जीवन की किताब, वरक़ वरक़ पन्ना पन्ना, गर्दिशें दौरा करना, तर्ज़-ए-गुफ़्तगू बातचीत का अंदाज़, सितमज़रीफ़ मज़ाक़ में तकलीफ़ देने वाला, रक़्स नाच, फ़ुग़ाँ रोना धोना, लरज़ उठा काँप उठा, नाज़ाँ नाज़ करने वाला 

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