भुला दे मुझको
तू मेरे साथ न चल पाएगा ऐ जान-ए-जहाँ
हो सके तो रह-ए-उल्फ़त में मेरे साथ न चल
वक़्त के दरिया के हम दोनों दो किनारे हैं
दरमियाँ अपने वजूदों के बहुत दूरी है
तेरे हमराह रिवाजों की कठिन शर्तें हैं
और मेरे वास्ते ये ज़िन्दगी मजबूरी है
क़ुर्बतें हम को सिवा फ़ासलों के क्या देंगी
शबनमी आरज़ूएँ तश्नगी बढ़ा देंगी
अपनी क़िस्मत में मिलन का कोई इमकान नहीं
क्यूँ कि मुश्किल है मोहब्बत, कोई आसान नहीं
तू न इस राह पे चल पाएगा मेरे हमराह
काग़ज़ी तेरा वजूद और ये शो’लों भरी राह
दूर रह मुझसे, ख़यालों से मिटा दे मुझको
और मुनासिब है कि तू अब से भुला दे मुझको
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