एक सवाल
तुम्हारे दिल में हम लोगों की ख़ातिर क्यूँ ये नफ़रत है मुझे अपने वतन के चंद लोगों से शिकायत है ये तुम हो , तुम ने हम को आज तक बस ग़ैर जाना है ये हम हैं , हम ने इस हिन्दोस्ताँ को अपना माना है अगर ये सच न होता , तो भला हम क्यूँ यहाँ होते हम अपने खून की बूंदों की क्यूँ फ़सलें यहाँ बोते वो जिस ने एक दिन कुनबे के कुनबे काट डाले थे ज़मीं के साथ ज़हन ओ दिल भी जिस ने बाँट डाले थे ये वहशी साज़िश ए दौरान हम ने तो नहीं की थी कि वो तक़सीम ए हिन्दुस्तान हम ने तो नहीं कि थी हुकूमत के वो भूके भेड़िये , इंसान के क़ातिल फिरंगी साज़िशों में थे हमारे रहनुमा शामिल वो इक काला वरक़ तारीख़ का क्या दे गया हम को तअस्सुब , खौफ़ , दिल शिकनी का साया दे गया हम को बहा जो खून ए नाहक़ , था तुम्हारा भी , हमारा भी लुटा था कारवां दिल का , तुम्हारा भी , हमारा भी मसाइब फ़िरक़ा वाराना , गुनह था चंद लोगों का जो था अम्बार लाशों का , तुम्हारा था , हमारा था हुए थे घर से बेघर जो , वो तुम जो थे , तो हम भी थे फिरंगी साज़िशें जीती थीं , हिन्दुस्तान हारा था तो फिर ये ज़ुल्म कैसा है , कि मुजरिम