कोई हिकमत न चली, कोई भी दरमाँ न चला
कोई हिकमत न चली, कोई भी दरमाँ न चला
पुर नहीं होता किसी तौर मेरे दिल का ख़ला
तो तमन्नाओं की क़ुरबानी भी काम आ ही गई
सुर्ख़रू हो के चलो आज का सूरज भी ढला
मुंतज़िर घड़ियों की राहें जो हुईं लामहदूद
लम्हा लम्हा था तवील इतना कि टाले न टला
आज भी हम ने तुझे याद किया है जानम
दिल के ज़ख़्मों प नमक आज भी जी भर के मला
अब हुकूमत में अना की तो यही होना था
दिल को बहलाया बहुत, ख़ूब तमन्ना को छला
तश्नगी का ये सफ़र और कहाँ ले जाता
मुझ को ले आया सराबों में मेरा कर्ब-ओ-बला
जब से बाज़ार प जज़्बात ने डाली है गिरफ़्त
फिर ज़माने में मोहब्बत का ये सिक्का न चला
दिन को “मुमताज़” ख़यालात मुज़िर थे लेकिन
रात ख़ामोश हुई जब तो मेरा ज़ेहन जला
दरमाँ – इलाज, पुर – भरा हुआ, ख़ला – शून्य, मुंतज़िर – इंतज़ार करने वाले, लामहदूद – जिस
की हद न हो, तवील – लंबा, अना – अहं, तश्नगी – प्यास, सराबों में – मृगतृष्णाओं
में, कर्ब-ओ-बला – दर्द और मुसीबत, मुज़िर – नुक़सानदेह
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