रक्खे हों जैसे दिल प शरारे, कुछ इस तरह
रक्खे हों जैसे दिल प शरारे, कुछ इस तरह
दिन ज़िन्दगी के हम ने गुज़ारे कुछ इस तरह
सहरा की वुसअतों में हो जैसे सराब सा
करती रही हयात इशारे कुछ इस तरह
हम से बिछड़ के जैसे बड़ी मुश्किलों में हो
माज़ी तड़प के हम को पुकारे कुछ इस तरह
तूफ़ाँ से जंग जैसे कि उस का ही जुर्म था
कश्ती प हँस रहे थे किनारे कुछ इस तरह
हर ज़ाविए से लगती है अब कितनी ख़ूबरु
हम ने क़ज़ा के रंग निखारे कुछ इस तरह
हस्ती है तार तार, तमन्ना लहू लहू
हम ज़िन्दगी की जंग में हारे कुछ इस तरह
मिज़गाँ से जैसे टूट के आँसू टपक पड़े
टूटे फ़लक से आज सितारे कुछ इस तरह
हसरत, उम्मीद, ख़्वाब, वफ़ा, कुछ न बच सका
बिखरे मेरे वजूद के पारे कुछ इस तरह
“मुमताज़” जल के ख़ाक हुई सारी ज़िन्दगी
सुलगे थे आरज़ू के शरारे कुछ इस तरह
मिज़गाँ – पलक
Lajawab
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