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ज़ुल्म का दिल भी आलम से तार होना चाहिए

ज़ुल्म का दिल भी आलम से तार होना चाहिए तेज़ इतनी तो लहू की धार होना चाहिए तू जो मुख़लिस है तो दुनिया समझेगी पागल तुझे दौर-ए-हाज़िर में ज़रा ऐयार होना चाहिए हर तरफ़ मतलब परस्ती , रहज़नी , हिर्स-ओ-हवस अब तो बेज़ारी का कुछ इज़हार होना चाहिए खाए जाते हैं वतन को चंद इशरत के ग़ुलाम अब किसी सूरत हमें बेदार होना चाहिए जी लिए अब तक बहुत मर मर के लेकिन दोस्तो हम को अब कल के लिए तैयार होना चाहिए क्या मज़ा चलने का गर राहों में पेच-ओ-ख़म न हों रास्ता थोड़ा बहुत दुश्वार होना चाहिए नाम पर मज़हब के अब काफ़ी सियासत हो चुकी अब तअस्सुब का क़िला मिस्मार होना चाहिए कब तलक “ मुमताज़ ” बैठें धर के हम हाथों प हाथ इंकेसारी छोड़ , अब यलग़ार होना चाहिए

छूटूँ तो कशमकश से किसी पल ख़ुदा करे

छूटूँ तो कशमकश से किसी पल ख़ुदा करे आख़िर इलाज-ए-ज़ीस्त करे तो क़ज़ा करे गाड़े हैं दिल में याद ने पंजे कुछ इस तरह सीने में दर्द रोज़-ओ-शबाना उठा करे साँसें भी दिल प रक्खी हैं इक बोझ की तरह कैसे कोई ये क़र्ज़ करे तो अदा करे कैसी ये तश्नगी है कि मिटती नहीं कभी सीने में कैसी आग सी हर पल जला करे कैसी चली है रस्म-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा कि अब जो भी मिले वो चेहरा बदल कर मिला करे अब क्या करें कि दिल तो सुकूँ से भी भर गया हंगामा कोई अब तो तबाही बपा करे मुद्दत से हसरतें भी बड़ी सोगवार हैं दिल की भी आरज़ू है कि कोई ख़ता करे पहरे हैं लफ़्ज़ लफ़्ज़ पे , है क़ैद में ज़ुबाँ “ मुमताज़ ” अब कलाम की हसरत भी क्या करे

लौट जाएँगी ये लहरें, सीपियाँ रह जाएँगी

लौट जाएँगी ये लहरें , सीपियाँ रह जाएँगी वक़्त के हाथों में कुछ कठपुतलियाँ रह जाएँगी पासबानी शर्त है गुलशन की , वर्ना एक दिन इस फ़ज़ा में रक़्स करती आँधियाँ रह जाएँगी फिर जलाने को यहाँ बाक़ी रहेगा क्या भला जल चुकेगा जब चमन , बस बिजलियाँ रह जाएँगी सरफ़रोशी बढ़ चलेगी अपनी मंज़िल की तरफ़ और फिर लहरों पे जलती कश्तियाँ रह जाएँगी वक़्त है , अब भी संभल जा रहबर-ए-मिल्लत , कि फिर अपने हाथों में फ़क़त बदहालियाँ रह जाएँगी इन्क़िलाब आएगा , ये मोहरे उलट देंगे बिसात आप की शतरंज की सब बाज़ियाँ रह जाएँगी जब जिगर कि आग भड़केगी , पिघल जाएगा ज़ुल्म वो भी दिन आएगा , खुल कर बेड़ियाँ रह जाएँगी रिज़्क़ की ऐसी ही नाक़दरी रही , तो एक दिन दाने दाने को तरसती बालियाँ रह जाएँगी लौट भी आया अगर वो तो यहाँ क्या पाएगा इस चमन में जब बरहना डालियाँ रह जाएँगी एक बिस्तर ख़ाक का , और बस ये दो गज़ की जगह ये तेरी “ मुमताज़ ” सब तैयारियाँ रह जाएँगी

कई रंगीन सपने हैं, कई पैकर ख़याली हैं

कई   रंगीन   सपने   हैं ,      कई   पैकर   ख़याली     हैं मगर देखें , तो हाथ अपने हर इक हसरत से ख़ाली हैं चलो   देखें ,     हक़ीक़त   रंग   इन   में   कैसे भरती है तसव्वर   में   हजारों   हम ने   तस्वीरें   बना   ली   हैं मोहब्बत   का   दफ़ीना   जाने किस जानिब है पोशीदा हजारों   बार   हम ने   दिल   की   जागीरें   खंगाली   हैं कहाँ रक्खें इन्हें ,   इस चोर क़िस्मत से बचा कर अब गुजरते   वक़्त   से   दो चार   जो   ख़ुशियाँ चुरा ली हैं परस्तिश   आँधियों   की   अब हर इक सूरत ज़रूरी है तमन्नाओं   की   फिर इक बार जो शमएँ जला ली हैं हवा   भी   आ   न   पाए अब कभी इस ओर माज़ी की कि   अपने   दिल   के   चारों   सिम्त दीवारें उठा ली हैं बड़ा   चर्चा   है रहमत का ,   तो देखें , अब अता क्या हो मुक़द्दरसाज़     के     दर     पर   तमन्नाएँ   सवाली     हैं ज़रा   सा   चूक   जाते   हम   तो   ये हस्ती बिखर जाती बड़े   मोहतात   हो कर   हम ने   ये   किरचें   संभाली   हैं उम्मीदें   हम को   बहलाती   रहीं   लेकिन   यही   सच   है अभी   तक   तार   है   दामन ,   अभी   तक  

हज़ारों राह में कोहसार हाइल करती जाती है

हज़ारों राह में कोहसार हाइल करती जाती है मेरी तक़दीर मुझ को लम्हा लम्हा आज़माती है कभी मर मर के जीता है , कभी जीने को मरता है यहाँ इंसान को उस की ही हसरत खाए जाती है बशर मजबूरियों के हाथ में बस इक खिलौना है नज़ारे कैसे कैसे मुफ़लिसी हर सू दिखाती है कोई पीता है ग़म , कोई लहू इंसाँ का पीता है ग़रीबी सर पटकती है , सियासत मुस्कराती है न जाने कितने चेहरे ओढ़ कर अब लोग मिलते हैं यहाँ इंसान से इंसानियत नज़रें चुराती है शिकस्ता पा हैं लेकिन हौसला हारा नहीं हम ने चलो यारो , सदा दे कर हमें मंज़िल बुलाती है चराग़ाँ यूँ भी होते हैं हमारे रास्ते अक्सर तमन्ना हर क़दम पर सैकड़ों शमएँ जलाती है ये किसकी आहटें “ मुमताज़ ” मेरे साथ चलती हैं तजल्ली रेज़ा रेज़ा कौन सी ख़िरमन से आती है 

चमक उट्ठे मेहेर सी हर सतर ये है दुआ यारब

चमक उट्ठे मेहेर सी हर सतर ये है दुआ यारब शुआ बन जाए ये अदना शरर ये है दुआ यारब लिया है अपने कांधे पर जो ये बार-ए-गरां हम ने ये कार-ए-ख़ैर हो अब कारगर ये है दुआ यारब हमारी काविशों को वो करामत दे मेरे मौला अमर हो जाए हम सब का हुनर ये है दुआ यारब हमारा ज़ाहिर-ओ-बातिन हो तेरे नूर से रौशन तू बन कर हुस्न हम सब में उतर ये है दुआ यारब जज़ा-ए-ख़ैर दे “ मुमताज़ ” बेकल* और नीरज* को दुआओं में मेरी रख दे असर ये है दुआ यारब बेकल* और नीरज* - बेकल उत्साही और गोपाल दास नीरज , जो इस प्रोजेक्ट में साथ थे।

शाम

वक़्त के ज़र्रों प जब हो मेहर-ए-ताबाँ का ज़वाल शब की तारीकी से हो दिन के उजाले का विसाल करवटें जब ले रहा हो रोज़-ओ-शब का ये निज़ाम नूर का तब खोल कर पर्दा निकाल आती है शाम अब्र के रुख़ पर गुलाबी रंग फैलाती हुई इक हसीना की तरह लहराती इठलाती हुई चहचहाते पंछियों के रूप में गाती हुई आस्माँ के रुख़ पे अपनी जुल्फ़ बिखराती हुई मेहर की किरनों की अफ़शाँ जुल्फ़ में चुनती हुई बादलों से फिर उफ़क़ पर लाल रंग बुनती हुई मुस्कराती है , लजाती है , जलाती है दिये फिर सियाही से सजा देती है दिन के ज़ाविए रंग पहले भरती है क़ुदरत की तसवीरों में शाम रफ़्ता रफ़्ता घेर लेती हैं सभी दीवार-ओ-बाम चंद लम्हों में उतरने लगती है फिर रात में ग़र्क़ हो जाती है आख़िर दरिया-ए-ज़ुल्मात में हो हसीं वो लाख , वो कितनी भी गुलअंदाम हो हर सुनहरी शाम का लेकिन यही अंजाम हो हुस्न की रंगीनियों पर भी फ़ना आती ही है कोई भी शय हो , कि वो अंजाम को पाती ही है मेहर-ए-ताबाँ-चमकता हुआ सूरज , ज़वाल-पतन , विसाल-मिलन , रोज़-ओ-शब-रात और दिन , निज़ाम-व्यवस्था , अब्र-बादल , मेहर-सूरज , अफ़शाँ- glitter dust,