वो तेवर क्या हुए तेरे, कहाँ वो नाज़ ए पिन्दारी
वो तेवर क्या हुए तेरे , कहाँ वो नाज़ ए पिन्दारी न वो जलवा , न वो हस्ती , न वो तेज़ी , न तर्रारी मिटा डालेगा तुझ को ये तेरा अंदाज़ ए सरशारी कहीं का भी न छोड़ेगी तुझे तेरी ये ख़ुद्दारी वही दिन हैं , वही रातें , वही रातों की बेदारी वही बेहिस तमन्ना , फिर वही हर ग़म से बेज़ारी न आया अब तलक ये एक फ़न हम को छलावे का लगावट की सभी बातें , मोहब्बत की अदाकारी ये शिद्दत बेक़रारी की , ये ज़ख़्मी आरज़ू दिल की कटीं यूँ तो कई रातें , मगर ये रात है भारी हक़ीक़त है , मगर फिर भी ज़माना भूल जाता है जला देती है हस्ती को मोहब्बत की ये चिंगारी ये दुनिया है , यहाँ है चार सू बातिल का हंगामा छुपाती फिर रही है मुंह यहाँ सच्चाई बेचारी मोहब्बत बिकती है , फ़न बिकता है , बिकती है सच्चाई ये वो दौर ए तिजारत है , के है हर फर्द ब्योपारी ग़रज़ , मतलब परस्ती , बेहिसी , " मुमताज़" बेदीनी वतन को खाए जाती है यही मतलब की बीमारी नाज़ ए पिन्दारी-गर्व के नखरे , अंदाज़ ए सरशारी- मस्ती का अंदाज़ , बेदारी-जागना , बेहिस तमन्ना-बेएहसास इच्छा , बेज़ारी- ऊब , फ़न-कला , अदाकारी-अभ