साँस ख़ामोश है, जाँकनी रह गई
साँस
ख़ामोश है, जाँकनी रह गई
एक
तन्हा शमअ बस जली रह गई
कारवाँ
तो ग़ुबारों में गुम हो गया
इक
निगह रास्ते पर जमी रह गई
ले
गया जाते जाते वो हर इक निशाँ
बस
मेरी आँख में इक नमी रह गई
ऐसी
बढ़ती गईं ग़म की तारीकियाँ
मुँह
छुपाती हुई हर ख़ुशी रह गई
उस
ने जाते हुए मुड़ के देखा नहीं
एक
ख़्वाहिश सी दिल में जगी रह गई
वक़्त
के धारों में हर निशाँ धुल गया
एक
तस्वीर दिल पर बनी रह गई
मिट
गई वक़्त के साथ हर दास्ताँ
याद
धुंधली सी है जो बची रह गई
उसने
“मुमताज़” हमको जो बख़्शी थी वो
आरज़ू
की अधूरी लड़ी रह गई
जाँकनी
–
आख़िरी वक़्त, तारीकियाँ – अँधेरे
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